मंगलवार, 26 अगस्त 2008

खेल अंगुली करने का...

कुछ हफ्तों पहले जब मैंने "सियासत के कुत्ते" लिखा था तो तमाम दोस्तों ने निजी तौर पर शिकायत की कि यार,लिखा तो मजेदार है पर बहुत छोटे में लिखा,तो मैंने झट से जवाब दिया,ऐसी कोई बात नहीं है,मैं इसकी सीरिज बनाना चाहता हूँ और बहुत जल्द इसके अगले अंक के साथ आऊंगा,पर इस बात का ख्याल ही नही रहा,आज फ़िर ख्याल आया तो चला आया कुछ लेकर। खेल अंगुली करने का...
इंसानी फितरत भी अजीब होती है,कभी कभी हमारी महत्वाकांक्षाएं इतनी प्रबल हो जाती हैं कि हम किसी को भी अंगुली करने से गुरेज नहीं करते,चाहे वो हमारा कितना भी ख़ास या सहयोगी क्यों न हो?
जैसाकि आपको पता होगा,बीते कुछ महीने पहले हमारे पड़ोसी पाकिस्तान में दो महान विचारों के गठबंधन के फलस्वरूप लोकतंत्र नामक तंत्र स्थापित हो पाया था।बड़ी खुशी की बात थी,हमारे लिए भी,अजी,हम आदर्श पड़ोसी जो ठहरे।पर महत्वाकांक्षा की जो तलवारें पहले से वहां मौजूद थीं,वो हमेशा इस नए तंत्र के उपर सरसराती रहीं।
उस वक्त,जरदारी साहब ने अपनी अयोग्यता को महानता में तब्दील करते हुए ख़ुद की जगह युसूफ रजा को प्रधानमंत्री बनवाया,तो नवाज साहब को लगा कि शायद जेल की चाहरदीवारी में रहते रहते उनमे कुछ महान गुणों ने जन्म ले लिया हो,लग गए साथ में।पर मांगो की तलवार सरसराती ही रही,जिन मांगों को लेकर जरदारी को सहयोग किया उनको पूरा करने में जरदारी की तरफ़ से हीला हवाली जारी रही। नवाज साहब इसी चक्कर में पड़े रहे और रोज सुबह शाम अपनी मांग दोहराते फिरते रहे,इस बीच जरदारी साहब, अमेरिका से अपना हिसाब किताब सेट करते रहे,साथ ही साथ नवाज साहब को गोली भी देते रहे।नवाज साहब भी बड़े भोले आदमी बेचारे गोली खाते रहे।इधर, जब जरदारी साहब को लगा कि अब अमेरिका से सेटिंग मुकम्मल हो गई है तो अपना पत्ता खोलते हुए कर दिया मुशर्रफ़ साहब को अंगुली,नवाज साहब खुश,उन्हें लगता रहा।जरदारी ने उनकी पहली मांग पूरी की है,माजरा तो कुछ और ही था।
सभी लोग खुशी मना रहे थे इसी बीच पीपीपी की तरफ़ से मुनादी हो गई कि राष्ट्रपति पद के लिए उनके उम्मीदवार जरदारी होंगे,यह सुनकर नवाज चपेटे में आ गए,उनको लगा कि भइया, कुछ गड़बड़ जरुर है,इसी के मद्देनजर उन्होंने अपनी दूसरी मांग को पूरा कराने की मुहिम तेज कर दी,पर महान अन्गुलिबाज का खिताब पा चुके जरदारी को पता था कि नवाज उनका कुछ नहीं उखाड़ सकते,आख़िर अमेरिका अब उनके साथ है।इधर,हैरान परेशान नवाज ने आनन् फानन में जरदारी का साथ छोड़कर अंगुली कर दी,पर टूटी हुई अंगुली भला जरदारी जैसा कमाल कहाँ से दिखाती? बेचारे नवाज,अब करें भी तो क्या,फ़िर वही पुराना काम............
अल्ला हो अकबर अल्लाह...
खुदा उनकी सुने, आमीन।

आलोक सिंह "साहिल"

बुधवार, 20 अगस्त 2008

...शोहरत की तलब...

बहुत रुसवा करती है ये शोहरत की तलब...
कहते हैं जिसे शोहरत के कीड़े ने काट लिया,उसे तो अल्लाह ही बचाए।जी हाँ,ऐसा ही कुछ हुआ है महाराष्ट्र के एक सांसद रामदास अठावले के साथ।
पिछले दिनों COLORS चैनल पर शुरू हुए बिग बॉस-२ के १४ सदस्यीय टीम में जगह न मिलने और उनके जगह संजय निरुपम के शामिल कर लिए जाने से अठावले महोदय का पारा अठावन्वें तल पर पहुँच गया।
बार विधायक और ३ बार सांसद रह चुके आरपीआई पार्टी के सांसद का आरोप है कि,चूँकि वह दलित हैं इसलिए उन्हें बिग बॉस २ जगह नहीं दी गई,और वे चैनल के खिलाफ अदालत में भी जायेंगे। इधर,इस वाकये से भड़के उनके पार्टी के सदस्यों और समर्थकों ने COLORS टी वी चैनल के दफ्तर में जमकर तोड़ फोड़ की और साथ ही साथ ठाडे,नागपुर और मुंबई में धरना प्रदर्शन भी किया।इतना ही नहीं बिग बॉस,यानी शिल्पा शेट्टी का पुतला भी फूंका।आलम यह रहा कि इनके प्रदर्शन के कारण घंटों सड़कें जाम रहीं और यात्रियों को श्रीमान अठावले के जूनून का शिकार बनना पड़ा।
अगर सामान्य तौर पर देखें तो यह एक खिसियाई बिल्ली का कारनामा है जो COLORS को नोचने में लगी हुई है,परन्तु, जो दुखद पहलू है इस घटना का,यह कि जिस जनप्रतिनिधि को आम जनता की बात करनी चाहिए,महंगाई से परेशान जनता के हित में प्रदर्शन करना चाहिए वह फकत अपने शोहरत के कीड़े के कारण अपने पद की गरिमा के साथ खिलवाड़ करने से भी बाज नहीं आया।यह एक शर्मसार कर देने वाली घटना है।
परन्तु, मेरा मानना है कि इस घटना को एक सांसद रामदास अठावले से न जोड़कर,एक आम इंसान रामदास अठावले से जोड़कर देखा जाना चाहिए,वैसे भी कीड़े कभी पद पूछकर नहीं काटते...
आलोक सिंह "साहिल"

मंगलवार, 19 अगस्त 2008

एक आस,खुशहाली की...

आज जब, एक के बाद एक धडाधड न्यूज और मनोरंजन के चैनल्स खुलते जा रहे हैं और हमारा आम दर्शक कन्फ्यूज हो चला है कि, क्या देखें और किसे देखें?इसी देश में एक ऐसा वर्ग भी है जो आज भी टी वी के सामने ख़ुद को असहाय महसूस करता है।जी हाँ,पुरबिया (भोजपुरिया) वर्ग।ऐसे में १५ से २० करोड़ की इस आबादी को लक्ष्य कर शुरू किया गया भोजपुरी भाषा का पहला चैनल "महुआ" काफ़ी सुकून देनेवाला है। बात करें क्षेत्रीय भाषा के चैनल्स की तो,आज की तारीख में बांग्ला से लगाये गुजरती,मराठी,पंजाबी,तमिल,तेलगु,मलयालम आदि लगभग हर भाषा के चैनल्स मौजूद हैं,जिनका प्रभाव क्षेत्र कतई अपेक्षाकृत अधिक नहीं है।ऐसे में,इतनी बड़ी आबादी को हमेशा नजरअंदाज किया गया,तब जबकि भोजपुरी का प्रभुत्व भारत से बाहर फीजी,मारीशस और सूरीनाम जैसे देशो तक है। एक अदद भोजपुरी चैनल की इस कमी को देखते हुए मीडिया जगत से जुड़े श्री पी के तिवारी ने तमाम तरह के रिस्कों को दरकिनार करते हुए पहल की।यह निश्चय ही एक बेहद साहसिक और प्रशंसनीय कदम है।इसके लिए श्री तिवारी बधाई के पात्र हैं। साथ ही सभी पुरबिया लोगों के लिए यह एक अविश्वसनीय सी लगने वाली खुशी है। श्री तिवारी के इस हौसले और साहस को देखते हुए बालीबुड में अपनी धमक रखने वाले एक और पुरबिया,प्रख्यात फ़िल्म मेकर प्रकाश झा भी बेहद उत्साहित हैं और उन्होंने ख़ुद को "महुआ" से जोड़ लिया है।ख़बर यह भी है कि वे महुआ के लिए धारावाहिकों का निर्माण भी करेंगे।इससे बड़ी सौगात पुरबिया लोगो के लिए शायद ही कुछ और हो।आशा करते हैं कि जिस तरह महुआ बूंद बूंद टपकता है उसी तरह "महुआ" हरपल खुशहाली टपकाती रहे,मनोरंजन टपकाती रहे। तो,पुरबिया साथियों!हो जायिए तैयार...

आलोक सिंह "साहिल"

शनिवार, 16 अगस्त 2008

......स्वंतत्रता दिवस मुबारक

फ़िर वो दिन आया और चला गया जब पुराने संदूकों के मुरचा खाए ताले खुले,कुछ रंग बिरंगी आयताकार आकृतियाँ बहार निकलीं,कुछ साफ़ सुथरे कपड़ा पहने सभ्य लोगों ने सुबह सुबह तमाम जगहों पर ३ रंगों वाली आयताकार आकृति को तिरंगे का नाम देकर गौरवपूर्ण अंदाज में फहराया,कुछ फूल धरती पर गिरे,तालियों की गडगडाहट और फ़िर कुछ मिष्ठान के नाम पर लम्बी धक्का पेल लाईनें,और ठीक इसके पहले कुछ घंटों तक हमारे साफ़ सुथरे लोगों ने अपनी साल भर की बचायी हुई जुबानी जमाखर्च का जमकर मुजाहिरा किया,और साथ ही क्षणेक के लिए जागृत हो उठा देश के हर नागरिक के दिल में सरफरोशी की तमन्ना।जी हाँ,आखिरकार कल हमारे आजादी का दिन जो था। इस झंडे वाली सुबह की ठीक पहले वाली रात को होती रही मैसेजिंग की भरमार और आधी रात से ही झंडे वाले पूरे दिन तक मोबाईल की सारी लाईनें व्यस्त रहीं।शाम को जब दिनभर की मेहनत से फुर्सत पाकर जब टी वी/ रेडियो आन किया तो अप्रत्याशित तौर पर धमाकों और हताहतों की खबरें समाचारों से नदारद थीं,उनकी जगह ले रखी थी हमारे नेतागणों की भावानाफोदू भाषण-बाजियों ने जिसे सुनकर रगों का लहू उबाल लेने लगा,पर बरसाती मौसम में पंखे और कूलर की ठंडक लगते ही हमारी पेशियाँ सिकुड़ने लगीं तबतक वक्त हो आया था सपनों में खोने का।हो गया,"स्वतंत्रता दिवस मुबारक" आपको भी,६१वें स्वतंत्रता दिवस की ढेरों शुभकामनाएं.
आलोक सिंह "साहिल"

बुधवार, 13 अगस्त 2008

.....मुझको अब महरूम ना कर.

.....मुझको अब महरूम ना कर.
गुरबत की बात हमसे ना छेडो दिलबर,

आँख मेरे रोये हैं विसाल में भी।

बावस्ता रहा हूँ मैं चाँद खुशियों से ही,

तन्हाई की अब रात ना दिखाओ दिलबर।

तेरी हर एक हँसी में घुला है मेरे जिगर का लहू,

मेरे जिगर के टुकड़े को यूँ नीलाम ना कर।

तुम हँसी हो बहुत छुपाने की नहीं बात सनम,

तेरे विसाल को तडपता रहा हूँ सदियों से।

मेरा ईमान भी लुट जाए तो जाने दो सनम,

तेरी बंदगी से मुझको अब महरूम ना कर.
आलोक सिंह "साहिल"

मंगलवार, 12 अगस्त 2008

हिन्दुस्तान: धमाकों का देश

!!8 साल 69 से अधिक जिहादी धमाके,1200 से अधिक मौतें!!
हिन्दुस्तान: धमाकों का देश
सोने की चिडिया,जगत का सिरमौर हमारा हिन्दुस्तान आज जिहादियों की ऐशगाह और शांतिप्रिय नागरिकों की मौतगाह बनता जा रहा है. कभी जम्मू कश्मीर,असम,छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश जैसे राज्यों तक सिमटा जिहादी आतंकवाद आज देशव्यापी हो गया है.तो ऐसे में क्या दिल्ली,क्या वाराणसी,क्या हैदराबाद,क्या जयपुर और क्या अहमदाबाद?सब बराबर हो गया है.कभी कभी लगता है कि समानता और समरसता की जो भावना सदियों से आजतक हम हिन्दुस्तानियों में नही जागृत हो पाई आज वो जिहादियों ने पैदा कर दी.आज की तारीख में पूरा हिन्दुस्तान एक समान हो गया है क्योंकि मौत हर जगह बराबर में मिलती है. आइये पिछले तीन सालों के आंकडों पर नजर डालें-
तारीख वर्ष जगह मौतें
१. २५ अगस्त २००५ मुंबई ४६
२. २९ अक्तूबर २००५ दिल्ली
. ७ मार्च २००६ वाराणसी २१ ४. ११ जुलाई २००६ मुंबई २०९५. ८ सितम्बर २००६ मालेगांव ४०६. १९ फरवरी २००७ पानीपत ६६७. १८ मई २००७ हैदराबाद १२८. २५ अगस्त २००७ हैदराबाद ४२९. १३ मई २००८ जयपुर ६३१०.२५ जुलाई २००८ बंगलौर ०१ ११. २६ जुलाई २००८ अहमदाबाद ५३
ये आंकड़े इस बात को चीख चीख कर बयां कर रहे हैं कि अब हिंदुस्तान सुरक्षित नहीं रहा.एक चौंकाने वाला तथ्य यह है कि इस्लामी आतंकी गतिविधियों में होने वाली मौतों में पूरे विश्व में हिन्दुस्तान का इराक़ के बाद दूसरा स्थान है,जो हमें नख से शिख तक शर्मसार कर देने के लिए काफ़ी है. बात करें हमारे रहनुमाओं की तो आज भी उनकी प्रतिक्रियाएं वैसी ही हैं जैसे पहले आती थीं.जब वे सत्ता में होते हैं तो जिहाद का रोना रोते हैं और मुआवजे बाँटते हैं और जब विपक्ष में होते हैं तो आरोपों की झडी लगा देते हैं.पर हकीकत यह है कि हैं सभी एक ही तवे के सेंके हुए. फ़िर भी हम बात करते हैं सर्वशक्तिमान बनने की,अमेरिका की बराबरी करने की,अरे, हमें तो किसी गटर में डूब मरना चाहिए.क्या आपको नहीं पता है कि ९/११ के बाद अमेरिका में जिहाद के नाम पर पटाखे तक नही फूटे वहीँ इस दरम्यान हमारे देश में तकरीबन १२०० लोग जिहाद के नाम पर हलाक हो गए.ये फर्क है सर्वशक्तिमान अमेरिका और शेखचिल्ली सा ख्वाब सजाये हिन्दुस्तान में. कहते हैं हर अति की इति होती है,पर यह क्या,यहाँ तो किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगती.सभी मस्त हैं अपनी राजनीति बजाने में.कोई अमरनाथ श्राईन बोर्ड मसाले पर,कोई सेतुसमुद्रम पर,कोई नंदीग्राम पर तो कोई कलावती पर. आख़िर,हम गुहार लगायें तो किससे?जागो अब तो जागो....
आज अगर खामोश रहे तो कल सन्नाटा छायेगा,
हर बस्ती में आग लगेगी,हर बस्ती जल जाएगा।
सन्नाटों के पीछे से तब एक सदा ये आयेगी।
कोई नही है,कोई नही है,कोई नही है कोई नही.
आलोक सिंह "साहिल"