रविवार, 28 मार्च 2010

नया गुजरात बनने तक...



देश के सबसे ताकतवर मुख्यमंत्री...अपेक्षाकृत बौने जांच दल के सामने पेश हो ही गए...जांच दल ने जीभरकर अपनी सालों की प्यास बुझाई...और घंटों हाल-चाल किए...एक-दो नहीं पूरे 9 घंटे तक हाल-चाल होता रहा...वह भी एक नहीं दो-दो सत्रों में....क्योंकि देश के सबसे उज्जवल प्रदेश के मुख्यमंत्री के पास रोज-रोज इतना वक्त थोड़े है कि वह रोज ऐसे आलतू-फालतू कामों के लिए समय निकालता फिरे.....
खैर, अब इससे एक बात तो साफ हो ही गई कि मोदी जी की क़ानून और संविधान में गहरी आस्था है...और साथ ही भारतीय संविधान में घोर विश्वास भी...तभी तो....वह एक अदने से जांच दल के सामने पेश होने में भी नहीं हिचकिचाए (अपने कद का ख्याल किए बिना)...क्योंकि SIT इतना ताकतवर आयोग नहीं कि उसके सामने पेश होना एकदम से मजबूरी ही हो...साथ ही भाजपा का भी एक ऐसी पार्टी होने का अहं बरकरार रहा, जो संविधान में सर्वाधिक आस्था रखती है...
बहरहाल, दूसरे चरण की पूछताछ के बाद जब रात के एक बजे करीब मोदी जी व्यापक हाल-चाल करके बाहर निकले तो काफी खुश और संतुष्ट दिखे...शायद मीटिंग सफल रही थी...और वैसे भी चाहे नानावटी हों या टाटा...या फिर अमिताभ ही क्यों न हो...आज तक रिकॉर्ड है, मोदी जी की मीटिंग कभी भी असफल नहीं हुई...अगर होती, तो गुजरात के अल्पसंख्यक आज वहीं थोड़े होते...और न ही वहां के बहुसंख्यक वैसी अवस्था में होते...
वैसे इस घटना से कई फायदे हुए...एक तरफ जहां कांग्रेस को इस घटना के बाद जनता के सामने भोकाल बनाने का मौका मिल गया...कि उसने आखिरकार मोदी को आठ सालों में पहली बार ही सही...किसी आयोग के सामने खड़ा तो कर ही दिया...उधर भाजपा में नया प्रशासनिक तंत्र बनने और फिर से अयोध्या मसले के उजागर होने के बाद कुछ ठोस चाहिए था...जो उसे मिल गया...बाकी काम तो उनके पढ़े-लिखे प्रवक्ता गण कर ही देंगे...सबका हित सध गया...
लेकिन कुछ लोगों का हित अभी बचा है...सहमे-सहमे और इंसानों की परछाईं तक से कांप जाने वाले कुछ जले-जलाए लोगों का इंतजार अभी भी बाकी है...जिनकी जिंदगी....उसी वक्त काली होनी शुरू हो गई थी, जिस दिन ट्रेन के कुछ डिब्बों और माचिस की कुछ तीलियों से निकली राख ने गुजरात को चमकाना शुरू कर दिया था...
इंतजार खत्म होगा..., कभी तो खत्म होगा...शायद तराजू लिए मूर्ति पर बंधी काली पट्टी एक दिन आंसुओं में भिंगकर उन जले हुए लोगों पर जमी कालिख पोतने के काम आएगी...और फिर शायद यह इंतजार हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा...या शायद तब तक के लिए, जब तक कोई दूसरा गुजरात जन्म न ले ले...

आलोक साहिल

शुक्रवार, 26 मार्च 2010

कहां मर गईं संवेदनाएं...


अगर कोई छोटा-सा बच्चा किसी अन्य बच्चे को मार दे, तो आप क्या करेंगे ?...उसे डांटेंगे, थपकी लगाएंगे और समझाएंगे...शायद यही करेंगे न...वह भी जब उस बच्चे की उम्र महज 5 साल हो, तो शायद आप इनमें से कोई भी काम न करके सीधे उसे गोद में लेंगे और प्यार से समझाएंगे...

लेकिन इसके उलट अमेरिका की एक स्कूल टीचर ने अपने स्टूडेंट को ऐसी सजा सुनाई कि सोच कर मन सिहर जाता है कि आखिर मूल्यों के कुछ मायने रह भी गए हैं या नहीं...उस 5 साल के बच्चे की खता फकत इतनी थी कि उसने अपने क्लासमेट को मार दिया....उसपर टीचर ने क्लास के दसियों स्टूडेंट्स को उस मारने वाले लड़के के मुंह पर घूंसे मारने का आदेश दे दिया...ये सब सज़ा के नाम पर...जिसका कि उस मासूम को मतलब भी नहीं पता होगा...

टीचर-स्टूडेंट की बात होने के बावजूद मैं यहां...गुरू-शिष्य परंपरा की बात नहीं करूंगा...क्योंकि मुझे पता है अब पहले जैसी बात नहीं रही, लेकिन थोड़ी-सी इंसानियत तो जुटाई ही जा सकती है, जो ये फर्क करा सके कि किसी मासूम के साथ कैसा सलूक किया जाय...मैं नहीं जानता कि इस घटना के बाद उस बच्चे को सज़ा का मतलब पता पाएगा या नहीं...लेकिन इतना ज़रूर है कि इसके बाद उसे नफरत का पाठ ज़रूर कंठस्थ हो गया होगा...

यह घटना कोई नई या अनोखी नहीं है, हां तकलीफदेह ज़रूर हो सकती है...ऐसी ही तमाम घटनाएं अपने देश में भी समय-समय पर घटती रही हैं...अभी कुछ दिनों पहले ही एक टीचर ने एक मासूम छात्रा को ऐसी सजा सुनाई कि बच्ची की मौत ही हो गई...आनन-फानन में कोर्ट-कचहरी सब हुआ...लेकिन परिणाम कुछ नहीं आया...सच तो यह है कि इन घटनाओं में आनन-फानन में उठाए गए किसी भी कदम का कोई परिणाम निकल ही नहीं सकता...क्योंकि इसके लिए व्यापक तौर पर काम करने की ज़रूरत है...

ये रूटीन सी बात हो गई है...जब भी ऐसी घटनाएं घटती हैं, तुरत-फुरत में नए क़ानूनों को बनाने, सजा का प्रवधान करने और जागरुकता लाने जैसी न जाने कितनी बातें एकसाथ होने लगती हैं...और फिर मामला ठंडा होते ही...सबकुछ फेडआउट....

हालांकि तकरीबन हर देश में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए नियम-क़ानून बनाए गए हैं, लेकिन क़ानून के मायने सिर्फ उनके लिए होते हैं...जिन्हें भगवान जैसी सत्ता में विश्वास...या उनसे डर होता है...(क़ानून का तो डर ही नहीं होता किसी में)...और ऐसे लोगों की संख्या के बारे में कोई भी कयास यथार्थ को इंगित नहीं कर सकता....परिणाम यह होता है कि ऐसी घटनाएं बदस्तूर जारी रहती हैं...

ऐसे में खुद से एक सवाल उठता है, क्या ज़रूरी नहीं कि बहुत क़ाबिल, बहुत सफल और महान बनने की दौड़ में अपने अंदर की थोड़ी संवेदना को भी बचा लें!

आलोक साहिल

गुरुवार, 25 मार्च 2010

बच्चन की तो भद पिट गई


भई आज तो घर से नहा धो कर निकले थे...फिर चूक कहां हो गई...आज तो मां के दर्शन भी किए थे...फिर भी...अमां निकले ही क्यों थे...नहीं निकलते, तो काम नहीं चलता क्या (वैसे भी हाथ में बहुत फिल्में तो हैं नहीं)...खामखां इस भद पिटाई से तो बच जाते....
यही सोच रहे होंगे...सदी के महानायक और बॉलीवुड के शहंशाह...अमिताभ बच्चन...
मुंबई में बांद्रा-वर्ली सी लिंक के दूसरे चरण के उद्घाटन में मुख्य अतिथि बनने के लिए जब अमिताभ को आमंत्रित किया गया, तो किसी को रत्तीभर भी इस बात की भनक नहीं थी कि अगले कुछ-एक घंटे में क्या कुछ होने वाला है...और मिस्टर बच्चन के लिए तो यह चार दशकों में संभवतः कदाचित पहला मौका था...मुंबई सरकार के किसी भी आयोजन में अतिथि बनकर पहुंचने का...सबकुछ बढ़िया-बढ़िया चल रहा था...चैनलों में खबरें लिखी जानें लगीं कि...'फिर से बच्चन और गांधी परिवार में नजदीकियां बढ़ने लगीं'...' यह सी लिंक नहीं दोस्ती का लिंक है' वगैरह-वगैरह.....अभी यह सब रिहर्सल चल ही रहा था कि महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष (जिनको टीवी और टीवी को वे बहुत रास आते हैं) ने सब गुड़ गोबर कर दिया...मोर्चा खोल दिया...कि किसने बुलाया अमिताभ को...मेरी राय नहीं ली गई..

उधर, बहुत सारे ऐसे लोग भी थे, जो इसी ताक में थे कि कोई आगे आकर भाड़ में सिर डाले, बस वे भी शुरू हो गए...
अब तो जैसे तमाशा बन गया...दिल्ली से महाराष्ट्र तक में कांग्रेस में खलबली मच गई कि 'किसने बुलाया' तो 'किसने बुलाया'
अजी, कोई भी बुलाए, अमिताभ इतने बड़े अभिनेता हैं, बिन बुलाए तो पहुंचेंगे नहीं...आलम यह था कि सीएम साहब भी रट लगाने लगे...मुझे तो पता ही नहीं था कि कार्यक्रम में अमिताभ आने वाले हैं (जाने क्या सोचकर कांग्रेस ने ऐसे शख्स को सीएम बनाया, जिसे कुछ पता ही नहीं रहता)...
बन गया पूरा माहौल, शुरू हो गया आरोप-प्रत्यारोप का दौर...और इन सब के बीच में शालीनता से बैठा एक शख्स (बच्चन) यह सोच रहा था...कि भैया बहुत खूब, कमबख्त घर बुलाकर बेइज्जत करने के लिए हम ही मिले थे...
हद तो तब हो गई जब समारोह में उपस्थित राज्य के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण कहते हैं कि 'मैं तो...समारोह में अमिताभ बच्चन को देखकर शॉक्ड हो गया'...
दरअसल, दोपहर तक जनपथ इस बात से अंजान रहा कि बोफोर्स मामले के समय साथ छोड़ने वाला, उनकी पार्टी शासित राज्य में किसी सरकारी टाइप के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनने वाला है...ऊपर से यह वही शख्स है जिसे गुजरात (भाजपा शासित) ने अपना ब्रांड एम्बेस्डर बनाया है...एक दर्द और भी तो था...ये वही अमिताभ है, जो उस वक्त किसी स्वयंभू ठाकरे के घर जाकर अपनी फिल्म दिखा रहा था, जब युवराज की महाराष्ट्र यात्रा के विरोध में ठाकरे के गुर्गो गला फाड़ रहे थे...

अब इतना सब के बाद भी एंग्री यंग मैन को अपनी दशकों पुरानी दोस्ती याद आ गई, तो भैया गलती हमारी तो नहीं ही है...

आलोक साहिल