कुछ हफ्तों पहले जब मैंने "सियासत के कुत्ते" लिखा था तो तमाम दोस्तों ने निजी तौर पर शिकायत की कि यार,लिखा तो मजेदार है पर बहुत छोटे में लिखा,तो मैंने झट से जवाब दिया,ऐसी कोई बात नहीं है,मैं इसकी सीरिज बनाना चाहता हूँ और बहुत जल्द इसके अगले अंक के साथ आऊंगा,पर इस बात का ख्याल ही नही रहा,आज फ़िर ख्याल आया तो चला आया कुछ लेकर। खेल अंगुली करने का...
इंसानी फितरत भी अजीब होती है,कभी कभी हमारी महत्वाकांक्षाएं इतनी प्रबल हो जाती हैं कि हम किसी को भी अंगुली करने से गुरेज नहीं करते,चाहे वो हमारा कितना भी ख़ास या सहयोगी क्यों न हो?
जैसाकि आपको पता होगा,बीते कुछ महीने पहले हमारे पड़ोसी पाकिस्तान में दो महान विचारों के गठबंधन के फलस्वरूप लोकतंत्र नामक तंत्र स्थापित हो पाया था।बड़ी खुशी की बात थी,हमारे लिए भी,अजी,हम आदर्श पड़ोसी जो ठहरे।पर महत्वाकांक्षा की जो तलवारें पहले से वहां मौजूद थीं,वो हमेशा इस नए तंत्र के उपर सरसराती रहीं।
उस वक्त,जरदारी साहब ने अपनी अयोग्यता को महानता में तब्दील करते हुए ख़ुद की जगह युसूफ रजा को प्रधानमंत्री बनवाया,तो नवाज साहब को लगा कि शायद जेल की चाहरदीवारी में रहते रहते उनमे कुछ महान गुणों ने जन्म ले लिया हो,लग गए साथ में।पर मांगो की तलवार सरसराती ही रही,जिन मांगों को लेकर जरदारी को सहयोग किया उनको पूरा करने में जरदारी की तरफ़ से हीला हवाली जारी रही। नवाज साहब इसी चक्कर में पड़े रहे और रोज सुबह शाम अपनी मांग दोहराते फिरते रहे,इस बीच जरदारी साहब, अमेरिका से अपना हिसाब किताब सेट करते रहे,साथ ही साथ नवाज साहब को गोली भी देते रहे।नवाज साहब भी बड़े भोले आदमी बेचारे गोली खाते रहे।इधर, जब जरदारी साहब को लगा कि अब अमेरिका से सेटिंग मुकम्मल हो गई है तो अपना पत्ता खोलते हुए कर दिया मुशर्रफ़ साहब को अंगुली,नवाज साहब खुश,उन्हें लगता रहा।जरदारी ने उनकी पहली मांग पूरी की है,माजरा तो कुछ और ही था।
सभी लोग खुशी मना रहे थे इसी बीच पीपीपी की तरफ़ से मुनादी हो गई कि राष्ट्रपति पद के लिए उनके उम्मीदवार जरदारी होंगे,यह सुनकर नवाज चपेटे में आ गए,उनको लगा कि भइया, कुछ गड़बड़ जरुर है,इसी के मद्देनजर उन्होंने अपनी दूसरी मांग को पूरा कराने की मुहिम तेज कर दी,पर महान अन्गुलिबाज का खिताब पा चुके जरदारी को पता था कि नवाज उनका कुछ नहीं उखाड़ सकते,आख़िर अमेरिका अब उनके साथ है।इधर,हैरान परेशान नवाज ने आनन् फानन में जरदारी का साथ छोड़कर अंगुली कर दी,पर टूटी हुई अंगुली भला जरदारी जैसा कमाल कहाँ से दिखाती? बेचारे नवाज,अब करें भी तो क्या,फ़िर वही पुराना काम............
अल्ला हो अकबर अल्लाह...
खुदा उनकी सुने, आमीन।
आलोक सिंह "साहिल"
रंग चैत्र महीने के
2 वर्ष पहले