दोस्तो कहते हैं किसी भी इन्सान को एक ही जन्म मिलता है,चाहे कुछ भी क्यों न करना हो,बड़े बुजुर्ग कहते हैं ,इन्सान अगर चाहे तो इस एक ही जन्म मी बहुत कुछ कर सकता है,नए नए आयाम स्थापित कर सकता है,पर क्या माँ के कर्ज को भी चुका सकता है,शायद नहीं,कभी नहीं,चाहे इन्सान एक से भी अधिक जन्म ले ले. पर माँ जो होती है दुनिया की सबसे stipid प्राणी होती है,उसे कुछ नहीं चाहिए होता है अपने लाल से,बच्चा कितना भी बदमाशी करे,कितना भी तंग क्यों न करे माँ हरदम उसकी हर एक बदमाशी को अपने आँचल से ढक लेती है, कितनी अजीब होती है माँ,पर जब वही बच्चा चला जाता है तो माँ पर क्या गुजरती है........ आज मेरे दोस्त अश्वनी की कविता मैं प्रकाशित कर रहा हूँ,जो माँ के इसी दर्द को बयां करती है.
पालने में झूलता एक माँ का टुकडा
इन सितारों से है आया एक फरिश्ता
जिसके दिल से बन गया है दिल का रिश्ता
सोचती है उसको कोई कष्ट न हो
रूठे सारी दुनिया पर वो रुष्ट न हो,
अपने जीवन का समझती है सहारा,
यही है बुढापे की लाठी,
राजदुलारा सूर्य से भी तेज है ये प्यारा मुखड़ा
पालने में झूलता......
उसकी हर एक जिद को मंजूर करती थी
भूखी रहती थी पर उसका पेट भरती थी
सोचती थी रोशन ये मेरा नाम करेगा
उसे क्या पता था वो बुरे काम करेगा
सारा सपना टूट कर अब चूर हो गया
माँ का टुकडा माँ के दिल से दूर हो गया
उखडी उखडी साँसे हैं और मन भी उखडा
पालने में झूलता..........................
आंसुओं के धार को वह पोंछती है
उसकी मैय्यत में खड़ी अब सोचती है
काश! फिरसे झूलता उस पालने में
कितनी मेहनत कर दी उसको ढालने
में काश! उसके दिल में कोई पाप न हो
पालने में ही रहे कभी खाक न हो
यह तमन्ना थी या है एक माँ का दुखडा
पालने में झूलता..............
अश्वनी कुमार गुप्ता
रंग चैत्र महीने के
2 वर्ष पहले