पैदा भी नहीं हुआ था, तबसे मुझे जानती है मेरी माँ,बताती हैं नानी-दादी छींक से पहले ही नाक पोंछ देती थी,दर्द हो मुझको तो वो रात भर रोती थी,बोझ मेरे सर का उठती थी, मेरी माँ
होश आया तो देखा,ख़ुद जागकर मुझे सुलाती है,पेट भरे न उसका मुझे पेट भर खिलाती है,मेरी माँ
फटे चिथदों से चलें काम उसका,मुझे राजकुमार सा सजाती है,मेरी माँ कभी आंधी कभी तूफ़ान,कभी बाढ़ कभी सूखा,तंग हालातों में भी खुशियाँ झल्काती है, मेरी माँ
कुछ बड़ा हुआ,अपने पैरों पर खड़ा हुआ....देखाहम हो सकें काबिल,खातिर इसकीअपना अस्तित्व भी भुला चुकी है,मेरी माँ
अब मैं अच्छा बुरा समझता हूँ,अपने हितों के लिए दुनिया से लड़ता हूँ,फ़िर भी मैं खुश रहूँ,खातिर इसकीमत्थे टेकती रहती है,मेरी माँ
याद आती है बचपन के जन्नत, और परियों की कहानी,तो पाता हूँ,वही तो थी,मेरी माँ
माँ! मैं आज तुमसे दूर हूँ,तेरे आँचल को महरूम हूँ,फ़िर भी तेरी स्नेहिल छाया मानो जादू की झप्पी देने आ जाती है,चाहूँ न चाहूँ तेरी कमी तदपा जाती है
जी करता है तुझे धन्यवाद करूँ,तेरे चरणों मे गिरकर दो आंसू धरूँपर...कहीं तू अपमानित तो नहीं होगी,तेरी महिमा कहीं खंडित तो नहीं होगी
माँ! आज मैं बहुत परेशान हूँ,दुनिया के झमेले में खड़ा अकेला हैरान हूँ,बता मैं क्या करूँ?चाहता हूँ रो पडूं,पर मन्नौअर कहते हैं -माँ के सामने रोया नहीं करते साहिल,जहाँ बुनियाद हो वहाँ नमी अच्छी नहीं होती
माँ! आज मैं सोंचता हूँ तो अचंभित हो जाता हूँ,कितना दुष्कर है इंसान का दैवीय हो जाना,जैसी तुम हो,मेरी माँअब भी तेरे स्नेह का भूखा,तेरा लाल, मेरी माँ
रंग चैत्र महीने के
2 वर्ष पहले
3 टिप्पणियां:
माँ से शुरुआत करी है साहिल भाई। इससे अच्छा क्या हो सकता है। बुनियाद मज़बूत ही समझो अब। लगे रहिये, हम आपके साथ हैं।
बहुत बहुत बधाई ब्लॉग शुरू करने की :) शुरुआत बहुत ही अच्छे विषय से की है माँ ....जो दुनिया में अनमोल है अच्छा लगा पढ़ के ..खूब लिखो और अच्छा लिखो यही दुआ है दिल से ..ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ
रंजू
alok bhai
main bhi aa gaya hun to ab dhoom machate hain
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