.....ख्वाब में जीता रहूँ!!
तुमसे मिलना तो पहले इत्तफाक ही था,
पर क्या इत्तफाक कि इत्तफाक से मोहब्बत हो गई।
ढूंढ़ता रहता हूँ तुझे हर वक्त,हर घड़ी गली - गली,
पर अजीब इत्तफाक ,आज फ़िर तू ख्वाबों में ही मिली।
तेरा मिलना भी यूँ तो कम खुशगवार नहीं,
काश तू समझती,ख्वाबों से इतर भी दुनिया हसीं होती है।
रहता है इंतजार हर पहर तेरे ख्वाबों का,
ख्वाबों से बाहर आना तेरा मुनासिब जो नहीं।
चाहता हूँ तुझको बसा लूँ अपने पलकों पर,
हर वक्त नजरें बंद हों और ख्वाब में जीता रहूँ.
आलोक सिंह "साहिल"
रंग चैत्र महीने के
2 वर्ष पहले
6 टिप्पणियां:
सही जा रहे हैं बंधू,सही है
sundar rachana ke liye badhai.
Bahut badhiya, badhai.
बहुत सही गुरु.
आलोक जी
ख्वाब में जीने का अपना ही मज़ा है। पर जब ख्वाब टूटते हैं , बहुत दुख होता है। अच्छा लिखा है। सस्नेह
सुधर जाओ :) सुन्दर लगी आपकी यह रचना जितनी बार पढ़ी साहिल जी
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