सोमवार, 17 मई 2010
एक पतन और सही...
और फिर एक और संस्था मलबे में तब्दील हो गई...संस्था से मतलब इंस्टीट्यूट से नहीं बल्कि इंस्टीट्यूशन से...इंस्टीट्यूशन, जिसे बनने और बनाने में लंबा ऐतिहासिक सफर तय करना पड़ता है...और फिर उसका यूं बिखर जाना...बेहद दुखद.
हम बात कर रहे हैं एमसीआई, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की...जो अब सिर्फ इतिहास बन चुका है...क्योंकि एमसीआई के चेयरमैन केतन देसाई को भ्रष्टाचार के एक मामले में गिरफ्तार होने के बाद उसे भंग कर दिया गया...जिस पर बाद में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने अपनी मुहर लगा दी...और अब पूरे गाजे-बाजे के साथ एमसीआई जमींदोज हो गई...इस नए संकल्प के साथ कि अगले साल से केंद्र द्वार बनाए गए नए क़ानून के तहत एमसीआई की जगह एक नई संस्था का गठन होगा...यानी एक संस्था इतिहास के पन्नों में और दूसरी इतिहास के पहले पन्ने पर...
क्या थी एमसीआई ?
एमसीआई का गठन इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट 1933 के तहत, 1934 में किया गया.
उद्देश्य था...देश के सभी मेडिकल कॉलेजों का नियमन...आजादी तक तो सब ठीक था...लोकिन आजादी के बाद मेडिकल कॉलेजों की संख्या धड़ल्ले से बढ़ने लगी...तो समस्याएं भी बढ़ने लगीं...फिर धीरे-धीरे यह महसूस किया जाने लगा कि 1934 में बनाए गए...नियम कानूनों में कुछ सुधारों की ज़रूरत है...जिसके चलते 1956 में इसकी जगह एक काफी हद तक नया...एक्ट लाया गया...जिसमें बाद में फिर 1964, 1993 और 2001 में तीन संशोधन किए गए...इसके उद्देश्य बहुत स्पष्ट थे...सभी संस्थानों में पढ़ाई का स्तर समान रखते हुए...भारतीय और अन्य विदेशी संस्थाओं के मान्यता संबंधी फैसले लेना....उचित डिग्री और योग्यता वाले डॉक्टरों का पंजीकरण और उनकी स्थाई और अस्थाई मान्यता...और विदेशी संस्थाओं से आपसी सामंजस्य के साथ मान्यता संबंधी मसले पर काम करना.
ले डूबा भ्रष्टाचार
एमसीआई कौन है, क्या है...इसके बारे में विरले लोगों को ही पता था...यूं कहें किंचित ही लोगों ने इसका नाम भी सुना हो...लेकिन मीडिया की देन कहें या फिर एमसीआई के तात्कालिक चेयरमैन के सुकृत्यों की अनुकंपा, कि अब काफी लोग जान गए हैं कि एमसीआई क्या थी...दरअसल, एमसीआई चेयरमैन केतन देसाई को इसी साल 22 अप्रैल को सीबीआई ने रिश्वत लेते हुए गिरफ़्तार किया था...वजह थी पंजाब मेडिकल कॉलेज को बिना सुविधा के अतिरिक्त छात्रों को भर्ती करने की अनुमति देने के लिए रिश्वत की मांग...रिश्वत लेते हुए पकड़े जाने के बाद उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ गया...और इस तरह 22 अप्रैल को ही आजादी पूर्व के इस संस्थान की विदाई का ब्लूप्रिंट तैयार हो गया...जो जल्द ही जमीनी हक़ीक़ीत में तब्दील हो गई...
नहीं पता कब तक, ऐसे भ्रष्टाचार देश के छोटे से लेकर बड़े संस्थानों को अपनी जद में लेते रहेंगे...लेकिन एक बात तो तय है संस्था चाहे छोटी हो या बड़ी...हर संस्था के खात्मे के साथ... आस्था के स्तंभ भी ध्वस्त होते हैं...परंपरा है, परंपराओं का क्या...ये तो शास्वत प्रक्रिया है...चलती रहेगी...कल को फिर कोई देसाई आएगा और अपने कारनामों के साथ आस्था के हज़ारों-हज़ार स्तंभों को ध्वस्त कर जाएगा...
आलोक साहिल
गुरुवार, 13 मई 2010
पत्नियों के साथ रात बिताने हक...
पाकिस्तान...जिसका नाम आते ही जेहन में बेहद दकियानुसी और फिल्मों एवं मीडिया की बदौलत बनी एक स्टीरियोटाइप तस्वीर सामने आने लगती है...लेकिन इसबार कुछ अलग और दिलचस्प मामला है...माजरा ऐसा कि सुनकर यकायक यकीन नहीं होगा कि यह ख़बर पाकिस्तान से आई है...जी हां, पाकिस्तान के सिंध प्रांत की सरकार ने क़ैदियों को उनकी पत्नियों से जेल के भीतर मिलने और रात गुजारने की सुविधा देने की घोषणा की है और बाकायदा इसकी व्यवस्था करने के लिए जेल अधिकारियों को आदेश भी दिया है.
पाकिस्तान की स्टेट होम मिनिस्ट्री ने इस संबंध में एक अधिसूचना जारी की है, जिसमें कहा गया है कि सिंध प्रांत की जेलों में क़ैद पुरूषों की पत्नियां अब उनके साथ हर 3 महीने के बाद जेल की भीतर एक रात बिता सकती हैं…
जेल अधिकारियों का आदेश दिया गया है कि जेल के भीतर क़ैदियों और उनकी पत्नियों के मिलने के लिए एक जगह की व्यवस्था की जाए...साथ ही उनकी गोपनीयता का भी ध्यान रखा जाए.
अधिसूचना के अनुसार 5 साल या उससे अधिक की सज़ा वाले क़ैदी इस सरकारी राहत से लाभ उठा सकते हैं...जो क़ैदी इस सुविधा का लाभ लेना चाहते हैं, उन्हें सबसे पहले जेल के अधीक्षक के समक्ष अपना निकाहनामा प्रस्तुत करना होगा...
अधिसूचना में कहा गया है कि अगर किसी क़ैदी की 2 पत्नियाँ हैं तो उन्हें अलग अलग समय दिया जाएगा, जबकि महिलाएं अपने साथ 6 साल की उम्र तक के बच्चों को भी ला सकती हैं...ये तो बल्ले-बल्ले है जी.
लेकिन ऐसा नहीं कि सभी क़ैदियों को यह सुविधा मिलने वाली है...पहली बंदिश तो 5 साल से अधिक की क़ैद होना है, दूसरी यह है कि संबंधित क़ैदी आतंकवाद के मामले में लिप्त न हो...या उस पर इससे संबंधित कोई मुकदमा न चल रहा हो.
खैर, एक तरफ जहां इस सुविधा को वाज़िब और लोकहित में बताया जा रहा है, वहीं सिंध के जेल अधीक्षकों के कान खड़े हो गए हैं...सरकार का क्या है...घोषणा तो सरकार ने कर दी, लेकिन मूर्त रूप तो उन्हें ही देना...ग़ौरतलब है कि सिंध प्रांत की 20 जेलों में 14 हज़ार के करीब क़ैदी बंद हैं...जबकि इन जेलों में 10 हज़ार क़ैदियों के रखने की ही जगह है...यानी एक तो पहले से ही सुपर हाउसफुल है...ऊपर से जब बीवी और बच्चों वाली बात आएगी, तो उनकी व्यवस्था कैसे की जाएगी...वह भी निहायत ही पोशीदा तरीके से...और तुर्रा ये कि इनमें से 75 फीसदी क़ैदियों के मुक़दमे अदालतों में चल रहे हैं.
हाल ही में अदालत ने अपने एक फैसले में कहा था कि शादीशुदा क़ैदी को अपनी पत्नी से मिलना का पूरा अधिकार है और यह सुविधा उसे जेल के भीतर दी जानी चाहिए...अदालत का कहना था कि क़ैदी अपनी पत्नी से न मिलने की वजह से मानसिक बीमारी का भी शिकार होते हैं और अक्सर नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं...यहां एक बात गौर करने वाली है कि जब क़ैदी जेल के अंदर हैं, तो उन्हें नशीले पदार्थ कहां से उपलब्ध होते हैं...यानी प्रशासन और व्यवस्था...अनचाहे और अप्रत्यक्ष रूप से यह भी मानती है कि उनकी जेलों में हिंदुस्तान की जेलों की ही तरह सबकुछ दुरुस्त है (खासकर बेऊर जैसी जेलों की तरह, जहां उत्कृष्ट किस्म के साहित्य से लेकर गुब्बारे और भी जाने क्या-क्या उपलब्ध होते रहते हैं)
इससे पहले भी 2005 में, पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत की सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर क़ैदियों को जेल के भीतर साल में 3 दिन अपनी पत्नियों के साथ रहने की अनुमति दी थी, जिसका व्यापक स्तर पर स्वागत किया गया था...यानी पश्चिमोत्तर प्रांत से चली ये बयार अभी दूर तलक जाएगी...अब तो भारत के क़ैदियों की भी यही तमन्ना है कि काश ! ये बयार भारतीय सरहद में दाखिल हो जाए.
आलोक साहिल
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