बुधवार, 16 जुलाई 2008

.....ख्वाब में जीता रहूँ!!

.....ख्वाब में जीता रहूँ!!
तुमसे मिलना तो पहले इत्तफाक ही था,
पर क्या इत्तफाक कि इत्तफाक से मोहब्बत हो गई।
ढूंढ़ता रहता हूँ तुझे हर वक्त,हर घड़ी गली - गली,
पर अजीब इत्तफाक ,आज फ़िर तू ख्वाबों में ही मिली।
तेरा मिलना भी यूँ तो कम खुशगवार नहीं,
काश तू समझती,ख्वाबों से इतर भी दुनिया हसीं होती है।
रहता है इंतजार हर पहर तेरे ख्वाबों का,
ख्वाबों से बाहर आना तेरा मुनासिब जो नहीं।
चाहता हूँ तुझको बसा लूँ अपने पलकों पर,
हर वक्त नजरें बंद हों और ख्वाब में जीता रहूँ.
आलोक सिंह "साहिल"

शनिवार, 12 जुलाई 2008

मैया मैं तो...परमाणु लैन्ह्यो

हमारा प्यारा भारतवर्ष एक प्रगतिशील देश है जिसकी प्रगतिशीलता का अंदाजा ११.६३ फीसदी की मंहगाई दर से ही लगाया जा सकता है.शायद लोगों को पता नहीं कि हमारे पीएम से लगाये योजना आयोग के उपाध्यक्ष और वित्तमंत्री सभी अर्थशास्त्री हैं.फ़िर भी लोग तो लोग हैं कि झुठ्मुथ में मंहगाई का रोना रो रहे हैं. खैर,किसी भी देश के अधिकाधिक विकास के लिए सबसे बड़ी जरुरत होती है उर्जा की.सच्ची बात तो यह है कि सभी मिलकर सबसे जरुरी काम पर अपना दिमाग खपा रहे हैं.अब उर्जा जैसी बड़ी समस्या से निपटने के लिए मंहगाई जैसी छोटी मोटी समस्याओं को इग्नोर तो करना ही पड़ता है .आख़िर बात देश के विकास की जो ठहरी.वैसे भी अगर मंहगाई है तो यह भी तो एक सूचक ही है कि हमारे यहाँ मंहगे मंहगे सामान बिकते हैं इसके मायने है कि हम अमीर हो रहे हैं,आखिरकार पैसा घूमफिरकर देश में ही तो रह रहा है. एक कहावत आपने सुनी होगी अंधे के हाँथ बटेर लगना.जी हाँ,हमारे रहनुमा अभी विचार मंथन में लगे ही हुए थे कि कैसे इंडिया को चमकाया जाए,कि एक पुराने शुभेच्छु देश ने एक उर्जावान प्रस्ताव दे दिया.भूखे को क्या चाहिए दो जून की रोटी ही न!फ़िर क्या था सभी आन्ख्मुन्दकर चिल्लाने लगे कि अगर फलां डील हो गया तो हम भी अमेरिका जैसे हो जायेंगे.ये तो पता ही है कि उर्जा आएगी तो लाईट आएगा और लाईट आएगा तो देश चमकेगा ठीक वैसे ही जैसे अमेरिका चमकता है.इतनी सी फंडामेंटल थ्योरी है.अजी कहने वाले तो कहते रहें कि देश की सुरक्षा के लिए जरुरी परमाणु परीक्षणों पर रोक लग जायेगी,देश उस सहयोगी का पिट्ठू बन जाएगा पाकिस्तान की तरह,वगैरह वगैरह...लोग भी अजीब हैं,अरे भाई जब डील के बाद जब हम अमेरिका बन ही जायेंगे तो क्या जरुरत है किसी परिक्षण वरिक्षण की.लोग भी न... हाँ जी,तो हमारी सरकार को लगा कि भइया ४ साल बिता दिए पर कुछ भी ऐसा नहीं उखाड़ पाए कि अगले चुनाव में गा सकें,चलो इसी बहाने एक नया गाना तो मिल जाएगा गाने को.पर हमारे बायें वाले भइया लोग पता नही क्या खुन्नस है हमारे मनोहारी साहब से. तो साहब आज तक़रीबन डेढ़ साल होने को है जब से हमारे पीएम साहब निरंतर रोना लगाये हैं कि मैया(भइया) मैं तो चन्द्र खिलौना(परमाणु) लैह्यों.पर भाई जी लोग माने ही नही तभी उत्तर कि तरफ़ से से एक भाई साहब सायिकिल पर बैठे हाँथ में लालटेन लटकाए चले आए,अब जाके हमारे पीएम साहब को आशा की किरण दिखी कि अब तो कुछ भी हो जाए सयिकिल पर बैठकर परमाणु तो लायेंगे ही.धन्य है श्रृष्टि के परम अणु.
आलोक सिंह "साहिल"

शुक्रवार, 4 जुलाई 2008

नमूने...एक से बढ़कर एक!!

नमूने...एक से बढ़कर एक!! भारत एक स्वतंत्र गणराज्य है,यहाँ के नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली हुई है.हर एक व्यक्ति की अपनी शैली है,अपना अंदाज है.कोई तो स्लैंग्स का प्रयोग ज्यादा करता है तो कोई रुक रुक कर बोलता है.पर कहीं न कहीं सबका एक ही मकसद होता है ख़ुद को अधिक माडर्न या औरों से अलग सिद्ध करना. इस मामले में हमारे टीवी चैनल वाले और हमारे फिल्मी हीरो भी पीछे नहीं हैं.आख़िर हों भी कैसे?आपने वह सूक्ति नहीं पढ़ी क्या,सिनेमा समाज का आईना होता है. आते हैं मुद्दे पर.हाल ही में हमारे एक मनोरंजन चैनल ZTV ने एक नया कार्यक्रम शुरू किया.reallity shows की रंगरूट दौड़ में एक नया रंगरूट.शो शुरू करने के पहले कार्यक्रम के निर्माता निर्देशकों के सामने बड़ी समस्या थी कि आजकल तो बहुतेरे स्टार टीवी पर reallity shows प्रस्तुत करते हैं,फ़िर इसे अलग कैसे बनाया जाए,उनकी इच्छा थी कि कार्यक्रम को नमूना बना दिया जाए.इसके लिए उन्हें तलाश थी एक नमूना दिखने वाले चेहरे की तो लो जी उन्होंने भोजपुरी फिल्मों के स्टार रविकिशन को पकड़ लिया और शुरू कर दिया नाचने गाने वाला एक reallity show. मैंने पहले ही कहा हर इन्सान की अपनी शैली होती है तो रविकिशन भाई का भी अपना अंदाज है,(आखिरकार वो भी स्टार हैं).आजतक उनकी जो पहचान बनी वो भोजपुरी फिल्मों से बनी पर यहाँ तो हिन्दी/अंग्रेजी बोलने उतार दिया वो भी सीधे मंच पर.कार्यक्रम के संचालन से पहले उन्होंने ढेर सारा भोजपुरी का हिन्दी अनुवाद और हिन्दी का अंग्रेजी अनुवाद रटा पर जब मंच पर उतरे तो अपनी असलियत नहीं छुपा सके.शुरू हो गए एक घटिया खिचाडिया अंदाज में.अब उनको कौन समझाए कि ये मॉरिशस नहीं इंडिया है.अरे भाई हम मानते हैं कि भोजपुरी पसंद करने वालों का एक बड़ा वर्ग हमारे यहाँ है पर जो कार्यक्रम पूरे देश में एक साथ चल रहा हो वहां इत्ती घटिया भोजपुरी नहीं शोभती न.अब आप लालू प्रसाद यादव तो हैं नहीं. वैसे ही हमारी भोजपुरी अभी तक एक भाषा का दर्जा नहीं पा सकी है,आज भी उसे आठंवी अनुसूची में स्थान दिलाने के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है,उस पर से तुर्रा ये कि आप उसे आम लोगों के बीच इतने गंदे तरीके से पेश कर रहे हैं.....ग़लत बात.वैसे भी बात किसी भाषा की नहीं है.आप हिन्दी बोलें, भोजपुरी बोलें,अंग्रेजी बोलें या फ़िर कुछ और ही बोलें मुझे कोई आपत्ति नही,पर कृपा करके किसी भी भाषा की टांग न तोडें. आलोक सिंह "साहिल"