मुम्बई की घटना जहाँ एक तरफ़ पूरे देश को एकजुट करने के काम आई,वहीँ दूसरी तरफ़ इसने कई लोगों की राजनीतिक हैसियत भी चमकाई.जी हाँ, हम बात कर रहे हैं अल्पसंख्यक मामलों के केन्द्रीय मंत्री अब्दुल रहमान अंतुले की.साथ ही देश के अन्य छोटे-बड़े नेताओं की भी जिनकी राजनीतिक हैसियत सिर्फ़ और सिर्फ़ धर्म और जाति पर ही टिकी हुई है.मुम्बई धमाके होते ही प्रधानमन्त्री से लगाए गृहमंत्री सभी ने संसद और संसद के बाहर आतंकवाद के विरूद्ध लम्बी-लम्बी लफ्फाजियां शुरू कर दीं.यह सबकुछ बेरोक-टोक चल ही रहा था कि अंतुले महोदय ने एटीएस के पूर्व प्रमुख हेमंत करकरे और अन्य दो अधिकारियों की मौत की अलग-अलग जांच की मांग कर दी.ये तीनो एक ही गाड़ी में बैठे हुए आतंकी हमले में मारे गए.अंतुले साहब का मानना था कि इन अधिकारियों की मौत हिंदू आतंकियों की साजिश है.क्योंकि करकरे मालेगाँव ब्लास्ट मामले में हिंदू नेत्री साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की भूमिका की जांच कर रहे थे .उनका बयान था- "वे (हेमंत करकरे) आतंकवाद के शिकार हुए या आतंकवादियों के साथ-साथ किसी और चीज के भी,मैं नहीं कह सकता......लेकिन उन्हें पता लगा था कि कुछ आतंकी गतिविधियों में गैर-मुस्लिम भी शामिल हैं.और आतंकवाद की जड़ में जाने वाला हर शख्स निशाने पर रहता है."पूरा का पूरा मामला ही एकदम से उलट गया.धमाके से तमतमाए कांग्रेसी नेता और प्रधानमन्त्री झट बचाव की मुद्रा में आ गए.यह बचाव आतंकवाद से देश का नहीं बल्कि ख़ुद का इस बयान से था.कहने लगे-"इंसान गलतियों का पुतला है,सो,हमें इस मामले को तूल नहीं देना चाहिए."उधर रोज ही जुबानी जमा खर्च में लगे रहने वाले राहुल गाँधी और उनकी माता सोनिया जी ने मानों मौन ही धारण कर लिया,वो तो भला हो पत्रकार साथियों का जो मुंह में अंगुली करके बयान ले ही लेते है,तो युवराज को कहना पड़ा "कांग्रेस के दुसरे बड़े नेता इसपर आपस में विचार-विमर्श करेंगे".इसके बाद हमेश कि तरह मसले को सुलझाने के लिए प्रणब मुखर्जी को आगे किया गया,पर जब फ़िर भी बात नहीं बनी तो गृहमंत्री पि.चिदंबरम ने पाँच पेज का एक लंबा चौडा स्पष्टीकरण पेश किया(वित्त बजट कि ही तरह नापा तुला और चतुराय से भरा हुआ) जिसमें उन्होंने कहा "करकरे द्वारा कि गई जाँच और उनकी मौत कि परिस्थितियों पर अंगुली उठाना ग़लत बात है और यह बहुत अफसोसजनक है."स्पष्टीकरण के आते ही अंतुले महोदय बेहयाई हँसी के साथ नरम पड़ गए पर शिवराज पाटिल कि तरह इस्तीफा देने कि गुस्ताखी से बचे रहे.दे भी कैसे सकते थे जब दिग्विजय सिंह जैसे उनके अनन्य सहयोगी कहते हैं "यदि अंतुले ने जांच के लिए कह भी दिया तो क्या ग़लत किया?अंतुले जैसे राष्ट्रवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता को राष्ट्रविरोधी कहा जा रहा है."अब इस पूरे मामले को क्या कहा जाए?हिम्मत है तो कह दीजिये,सब वोट कि राजनीति है!!
आलोक सिंह "साहिल"
शनिवार, 17 जनवरी 2009
इंसान ग़लतियों का पुतला है...
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5 टिप्पणियां:
ji han bhai sahab ye kamini vot ki hi raajneeti hai
yar kya khabar ki nabz pakdte ho.. nic yar
है तो वोट की ही राजनित!!
सामयिक मुद्दा... सटीक कलम... बधाई..
bilkul sahi bat haialok ji,yah to sarasar vot ki hi raajneeti hai
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