सोमवार, 19 जनवरी 2009

क्षमा शोभती उस भुजंग को...

ऐसे तो हिन्दुस्तान धमाकों का देश बन चुका है,कोई भी जगह ऐसी नहीं बची जिसे सुरक्षित माना जाए...चाहे वो संसद ही क्यों न हो....पर मुम्बई में हुए धमाकों ने हमारी एक और अदा की बानगी पेश की॥हमारी बुझदिली! मुम्बई में धमाके क्या हुए ,मानो क़यामत ही आ गई...लोग गला फाड़ने लगे,लोगों का काम ही है गला फाड़ना।बेचारे कर भी क्या सकते हैं,कोई भी ख़ुद को लाचार और असुरक्षित महसूस करने वाला इंसान थक-हारकर गला फाड़ने लगता है,तो ये कोई नई बात नही...ऐसा तो हर धमाके के बाद ही होता है.पर जो बात इसबार अजीब हुई कि लोगों( आम जनता) ने तो अपना काम किया ही(इस मामले में हम भारतीय बहुत ईमानदार हैं)आश्चर्यजनक तरीके से हमारे सुख-दुःख के नियंता,हमारे नेतागण भी गला फाड़ने लगे....देने लगे पाकिस्तान को चेतावनी,उधर पाक अपनी मनमानी करता रहा...इसबीच गृहमंत्री बार बार कहते रहे,इसबार मार फ़िर बताता हूँ.कभी तो आतंकियों के पाकिस्तानी होने का सबूत पाक को दिखाते तो कभी विश्व समुदाय को दिखाने की बात करते...थक हारकर अमेरिका की शरण में आ गिरते...उखड़ता कुछ नही.. क्या हो गया हमें? कहीं हमने अपनी धार तो नहीं खो दी (दुर्भाग्य से वो कभी थी ही नही..)क्योंकि जिसके पास कुछ करने का बूता होता है वो धमकियाँ नहीं देता, क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,उसको क्या जो दंत-विहीन विषरहित विनीत सरल होक्या हुआ अमेरिका में..एक धमाका हुआ और उसने खड़े-खड़े अफगानस्तान को नेस्तोनाबूद कर दिया ग़लत किया कि सही यह अलग विवाद का मसला हो सकता है..पर असल बात यह है कि उसने अपने जख्म पर मरहम लगाने के लिए भारत या किसी अन्य देश के आगे गुहार नहीं लगाई नही,जो करना था कर गुजरा..हमें आजाद हुए ६ दशक से भी ज्यादा हो गए,इस बीच हम बहुत बड़ी परमाणु शक्ति भी बन बैठे,फ़िर भी आज भी किसी भी छोटी-बड़ी समस्या पर दूसरो के आगे टेसुयें बहाने की आदत नहीं गई. ऐसा क्यों? क्या पाक और अमेरिका के माँओं के सीने से ही दूध निकलता है,हमारी माएं पानी पिलाती हैं?
क्या हिन्दुस्तान की माँओं ने कायर और नामर्द जनना शुरू कर दिया है? नही॥ऐसा बिल्कुल नही,अब मुम्बई धमाकों के बाद सोनिया गाँधी का भाषण ही सुन लीजिये (आख़िर,वह भी एक मां हैं..) कि हम भारतीयों में बलिदान की उत्कृष्ट परम्परा रही है...क्या मायने हैं इसके ?क्या हम भारतीय सिर्फ़ गुमनाम मौत मरने के लिए ही पैदा होते हैं? चलिए दूसरे तरीके से बात करते हैं...अगर 26/11 की घटना मुम्बई की जगह वाशिंगटन में हुई होती तो क्या होता..पाकिस्तान अबतक इराक की शक्ल अख्तियार कर चुका होता..पर,भारत ऐसा नही कर पाता..आखिर क्या मज़बूरी आड़े आती है? सच कहते हैं पाकिस्तानी कि हमलोग बिल्कुल कायर और नामर्द।हमारा लहू कभी उबलता ही नही.हर एक घटना के बाद हमारे विदेशमंत्री एक ही राग अलापते हैं कि सारे विकल्प खुले हैं...क्या मतलब निकाले हम इसका ?क्या चुल्लू भर पानी में डूब मरने का विकल्प भी नहीं खुला है?मुम्बई हमले को दो महीने होने को आए और हम जहाँ के तहां हैं...कुछ हुआ है तो फकत लफ्फाजियां..हमारे हुक्मरान कहते हैं कि युद्ध की कोई संभावना नही,अरे,कौन चाहता है कि युद्ध हो? पर, कि पाकिस्तान यूँ हमारी निर्लज्ज कायरता के कारण वाक् ओवर पा जाए यह भी तो नही चाहते...दुर्भाग्य है कि ,अपने जख्मों का हिसाब लेने के लिए हम उम्मीद करते हैं उस अमेरिका से जिसने ख़ुद पाक में आतंक को पाला-पोषा है और बेइंतहा पैसा खर्च करके उसे अपना प्रिय पिट्ठू बनाया है, हम उम्मीद करते हैं उस अमेरिका से जिसे किसी भी सूरत में पाक-अफगान सीमा पर पाकिस्तान की मदद की दरकार है.यदि भारत-पाक युद्ध होता है तो पाकिस्तान अपनी सेना वहां से हटा लेगा जो कि अमेरिका के लिए किसी अंधे कुंए में गिरने से भी बदतर होगा...ऐसे में अमेरिका से मदद की उम्मीद हमारी किस मानसिक दशा को दर्शाता है?आज अगर हमारे पास मुम्बई की घटना में पाक के शामिल होने के पुख्ता सबूत हैं तो अमेरिका के आगे झोली फैलाने का क्या मतलब?क्या हम इस लायक भी नहीं कि छोटे-मोटे हिसाब ख़ुद क्लियर कर लें?हम चीखते हैं कि सारे सबूत पूरे दुनिया को दिखायेंगे,किसे दिखायेंगे,उन्हें जो अपनी आँखे जानबूझकर खोलना ही नहीं चाहते.क्या आंखों देखी को भी प्रमाण की जरुरत होती है?दुनिया में कौन ऐसा अँधा है जिसे पाक की आतंकी करतूतों की ख़बर नही? हमारी पीढी के लिए यह शायद पहलीबार है जब पूरे देश में नेताओं के विरुद्ध रोष की ऐसी लहर उठी है,अगर फिरभी सब-कुछ ऐसे ही चलता रहा तो बहुत जल्द ये लहर सुनामी का रूप धर लेगी,जिसकी तबाही से हमारे हुक्मरान भी बच नहीं पायेंगे...
आलोक सिंह "साहिल"

16 टिप्‍पणियां:

vijay kumar sappatti ने कहा…

alok ji , is rachana ke liye to pahle badhai sweekar kariye..

maine ek saans mein poora article pad liya .. aapne itna accha likha hai .. aur infact ab bhi agar ham hamesha ki tarah kuch din bol kar chup chaap ho gaye to .. desh ko tabaah hone se koi bacha nahi sakta ... mujhe to ye kahna hi ki , hum sarkar chunte hai , wo apna kaam to karne ... bhai desh ko bachana unka kaam hai ... this is their first and formost duty ...

mujhe nai peedhi par vishwas hai ki ho hamarai jaisi [ hum bhi shamil hai kayaron mein ] galti nahi karenge..
alok ji meri ek poem " shahid hoon main" chuni gayi hai " shabdyudh: aatankwaad ke viruddh " exhibition mein , jo pune mein ho rahi hai ..iski detail mere blog par hai ..
main personally ye maanta hoon ki , hamne ye jwala jalaye rakhana hai ...
hamare shahido ko karz hai ham par.. aur ek imaandari se bhari jagrukta jaruri hai ,is waqt....
agar aap pune ,mumbai ke aas paas hai to is exhibition mein awashya aayiye..

aapka

vijay

रंजू भाटिया ने कहा…

मुझे तो नही लगता कि अब कुछ होगा ..वही चुनाव के रंग हैं ..और वही हमारे भूलने की आदत अगले हादसे तक तो कम से कम ..बहुत सी बातें आपकी इस पोस्ट में विचारणीय हैं ..कुछ कहने के अलावा और साबुत सिर्फ़ दिखाने के अलावा कुछ होता भी अतांक वादियों के ठिकानो के ख़िलाफ़ तो कुछ बात थी ..पर सिर्फ़ बातें हुई ...देखते हैं अब अगला हादसा होने पर क्या क्या साबूत दिए जाते हैं

Jimmy ने कहा…

nice blog ji


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हरकीरत ' हीर' ने कहा…

आज अगर हमारे पास मुम्बई की घटना में पाक के शामिल होने के पुख्ता सबूत हैं तो अमेरिका के आगे झोली फैलाने का क्या मतलब?क्या हम इस लायक भी नहीं कि छोटे-मोटे हिसाब ख़ुद क्लियर कर लें?हम चीखते हैं कि सारे सबूत पूरे दुनिया को दिखायेंगे,किसे दिखायेंगे,उन्हें जो अपनी आँखे जानबूझकर खोलना ही नहीं चाहते.क्या आंखों देखी को भी प्रमाण की जरुरत होती है?दुनिया में कौन ऐसा अँधा है जिसे पाक की आतंकी करतूतों की ख़बर नही? हमारी पीढी के लिए यह शायद पहलीबार है जब पूरे देश में नेताओं के विरुद्ध रोष की ऐसी लहर उठी है,अगर फिरभी सब-कुछ ऐसे ही चलता रहा तो बहुत जल्द ये लहर सुनामी का रूप धर लेगी,जिसकी तबाही से हमारे हुक्मरान भी बच नहीं पायेंगे...


Wah Aalok ji dil bag bag ho gya aapke vichar padh k...desh ko aise hi saputon ki jarurat hai... naman!

Unknown ने कहा…

Yah bahut hi hatashajanak hai ki itni badi ghatna aur itne bade janakrosh ke baawjud hua kuchh nahi,sach kaha aapne agar aisa hi raha to yah rosh jarur ek din dawanal banker rahegi

Himanshu Pandey ने कहा…

बहुत जरूरी बातें आपने इस प्रविष्टि में की हैं. भारतीय नेतृत्व की उदासीनता और एवमेवता ने उस पर से हमारा विश्वास उठा दिया है. नेता कुछ कर नहीं रहे - गाल बजा रहे हैं. उनके विरुद्ध जन मानस का इस तरह क्रुद्ध होना यही दर्शित करता है कि हम उनसे अपनी आशायें खो चुके हैं, पर फ़िर क्या हो? प्रश्न खड़ा है. चुनाव आ गये हैं- लोकतंत्र का हरकारा दस्तक देने पहुंच गया है. वक्त तो कुछ कर गुजरने का आ ही गया है.

Unknown ने कहा…

जिस विमर्श को आपने उठाया है,उसके लिए जितनी भी तारीफ की जाए कम है,इसपर व्यापक बहस की जरुरत बहुत पहले से ही महसूस की जा रही थी.उम्मीद करता हूँ आपके द्वारा शुरू की गई बहस अंजाम तक पहुँचेगी.

पुरुषोत्तम कुमार ने कहा…

भाई आलोक जी आपने बहुत अच्छा लिखा है. मेरा भी यही मानना है.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

तथ्यों की बहुत ईमानदार सार्थक प्रस्तुति...
नीरज

Science Bloggers Association ने कहा…

अगर फिरभी सब-कुछ ऐसे ही चलता रहा तो बहुत जल्द ये लहर सुनामी का रूप धर लेगी,जिसकी तबाही से हमारे हुक्मरान भी बच नहीं पायेंगे...

सही कहा आपने। लेकिन ये नेता इतना तो समझते ही होंगे। इसलिए आशा की जानी चाहिए कि वे अब ऐसी स्थितियॉं नहीं आने देंगें।

Unknown ने कहा…

rajneesh ji ki bat se bilkul sahmat hun..

दीप ने कहा…

hi alok, abhi maine tumhari rachana "Kshama shobhati...." ko padha hai, dobara bhi padhane ko majboor ho gaya. Acchha likha, uddharan satik liye hain, ooj bhi bharpur hai. jo meri soch iss 'topic' ko lekar thi kafi had tak use iss lekh ke jariye pane ka prayas kiya hai. Isake liye mai tumhe badhai dena chahunga..well done.
par alok issae bhi utkrisht ki gunjaish hoti yadi hum mumbai kand ke vikalpo ka awalokan karate aur sath hi sath iss tarah ke purani ghatnao ke samay ke samay sarkar ne kya kadam uthaye iss par thoda kendrit hote aur ek aam aadami jis kuntha ko mahsus kar raha hai usako parilakshit karane ka prayas karate.
tumhara lekh tatkalik pariwesh ko lekar achha hai par iss tarh ki ghatnaye dashako se hoti aa rahi hai, to iss lekh ko 'univershal' banaya ja sakata tha kyonki apani sarkar har ghatana ke baad 'fire' hoti hai fir kahti hai chalo iss bar chhod diya agali bar iss tarah kiya to....kar denge. sukshmata se, tumane mumbai ko washingaton se tulana karane ka prayas kiya wo kisi anya shahar se honi chahie thi.....
antath, maje ki baat batau to lekh bahut hi acccha hai ye to mai tumhari khichai kar raha tha, anyatha mat lena...good luck

waiting for ur new edition,

your's
sandeep

आलोक साहिल ने कहा…

thanx bhaiya,aapki pratikriya pakar dil khush ho gaya.....
apki khichayi ko main apna saubhagy samajhta hun.....
age kam se kamtar khinchayi ki gunjayish rahe iski main bharpur koshish karunga...
ALOK SINGH "SAHIL"

Khushtar ने कहा…

Only for testing...

hem pandey ने कहा…

२६/११ की घटना को ढाई महीना हो चुका है.मामला ठन्डा होता जा रहा है. जनता इससे मिलती जुलती एक और घटना के इन्तजार के अलावा और कुछ नहीं कर सकती.

kauleshbihari ने कहा…

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