महंगाई और आर्थिक मंदी के पहिये पर रेंगता हुआ, गठबंधन के जंजाल में जकडा भारतीय लोकतंत्र एकबार फिर से अंगडाई लेते हुए नया करवट बदलने को आतुर है। लेकिन कई सारे ऐसे पहलू हैं जो इसबार के आमचुनाव को ख़ास बनाते हैं...
अब तक के भारतीय इतिहास में संभवतः यह पहलीबार है जब प्रधानमन्त्री पद के दावेदार को लेकर चुनाव पूर्व ही इतनी साड़ी बिसातें बिछ गयी हैं...गांधी टाईटल वाले नेताओं को छोड़ दें तो यह पहलीबार है जब कांग्रेस ने चुनाव के पहले ही अपना कैंडिडेट घोषित कर रखा है. पिछले आम चुनावों को देखें तो कांग्रेस पार्टी अब तक अपने आलाकमान/ गांधी नाम पर ही चुनाव लड़ती थी...लेकिन इसबार मनमोहन सिंह को आगे कर चुनाव लड़ रही है...वह भी तब जब उसके स्थायी युवराज पूरे देश में पैर जमाने की जुगत में लगे हैं...ऐसे में पूरे जोरदार ढंग से मनमोहन को अपना कैंडिडेट बताकर कांग्रेस क्या सिद्ध करना चाहती है, इसे समझना बहुत कठिन नहीं है...यह मजेदार रहस्य इस वाक़ये से और भी स्पष्ट हो जाता है- आज तक भाजपा के पीएम इन वेटिंग (तथाकथित मजबूत नेता) लालकृष्ण आडवाणी द्वारा बेइंतहा खरी खोटी सुनने और लगाए गए ढेरों आरोप मसलन, इतिहास के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री और मैडम के पिट्ठू...वगैरह...वगैरह...का जवाब आखिरकार मित/ मृदु भाषी समझे जाने वाले मनमोहन ने दे ही दिया...
हालांकि उनका जवाब देना कोई बड़ी बात नहीं थी तब जबकि उनके प्रतिद्वंदी आडवाणी अमेरिकी तर्ज पर भारतीय लोकतंत्र का फैसला टीवी के डिबेट से करना चाह रहे हों...लेकिन चूँकि मैडम सोनिया की सरपरस्ती में फूंक-फूंक कर कदम रखने वाले मनमोहन सिंह ने ऐसा किया...बात बड़ी लगती है। लेकिन इससे भी मजेदार बात तो यह है कि जब उनसे इस बाबत पूछा गया कि भई, इतने दिनों से आरोप लगते रहे तो जवाब आज ही क्यों...तो उनका कहना था कि...चूँकि आजतक मुझे विश्वास नहीं था कि मुझे कैंडिडेट बनाया जायेगा या नही...लेकिन आज जब मुझे विश्वास हो गया है कि मैं ही कांग्रेस का पी एम इन वेटिंग हूँ...तो जवाब दे दिया। ध्यान देने की बात यह है कि मनमोहन के फार्म में आने के महीनों पहले से ही आलाकमान की तरफ से ये बात बार-बार कही जा रही थी कि उनके कैंडिडेट वे ही होंगे। लेकिन क्या करें भले -मानस लोगों में इज्जत की पुंगी बजने का दर कुछ ज्यादा ही रहता है...सो, कुछ कांग्रेसियों द्वारा प्रधानमन्त्री पद के दावेदार बताये जा रहे राहुल गांधी द्वारा बार-बार आश्वासन मिलने पर भी कि मनमोहन ही कैंडिडेट हैं...उन्हें अपनी कमजोरी का एहसास सताता रहा।
इस बहस को यहीं छोड़ते हैं...आते हैं दूसरी बड़ी पार्टी भाजपा पर, तो इसबार कुछ भी बहुत नया नहीं नजर आ रहा है...शिवाय इसके कि आजतक वाजपेयी के मुखौटे पर वोट मांगने वाली भाजपा आज आडवानी का नाम लेने पर मजबूर है...बाकी हरबार कि तरह इसबार भी भाजपा ने पहले से अपना कैंडिडेट घोषित कर रखा है...आडवानी, पी एम इन वेटिंग! लेकिन आडवानी के पेशानी कि लकीरों में झाँका जाये तो उसमें कहीं न कहीं मोदी और मुरली मनोहर जोशी कि तस्वीर साफ़-साफ़ झलकती है तब जबकि मोदी खुलेआम इसबात का ढिंढोरा पीट रहे हैं कि इसबार ही नहीं बल्कि 2014 का चुनाव भी आडवाणी जी के नेतृत्व में ही लड़ा जायेगा (कौन समझाए उन्हें नेतृत्व में लड़ना और बात होती है और पीएम बनना और) लेकिन कभी- कभी मजबूत और निर्णायक लोग भी काँप जाते हैं, इसे पचाना कोई तकलीफ कि बात नहीं...अब ऐसी भी क्या बात है इज्जत केवल म्रिदुभाशियों कि ही थोड़े होती है... एक बात और जो ख़ास है, 96 के चुनावों को देखें तो, तब तीसरा मोर्चा बना था , जो उस वक्त तक के लिए ख़ास था..लेकिन इसबार तो चौथा मोर्चा भी मोर्चेबंदी में लग गया है। हद तो यह है की महाराष्ट्र में अपने पार्टी के लिए एक अदद मुख्यमंत्री भी न जुगाड़ पाने वाले शरद पवार से लगाए बहन जी तक इस जमात में शामिल हैं...
वहीँ राहुल गांधी के शब्दों में 'आर्थिक सुधार व विकासवादी' व्यक्तित्व वाले बिहार तक ही सीमित रहे बिहार के ,मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अपरोक्ष रूप से ही सही इस घुड़दौड़ में शामिल हैं...लेकिन एनडीए के घटक के रूप में उनके लिए यह दिवास्वप्न सरीखा ही है...वे भी इस जुगत में हैं की चुनाव बाद यूपीए से गलबहियां कर कुछ तो उखाड़ ही लें। लेकिन एनडीए कि प्रमुझ घटक किसी भी सूरत में ऐसा होने देने के मूड में नहीं है। क्योंकि पहले ही अपने एक बड़े घटक बीजद के अलग होने के बाद भाजपा इस मामले में ज्यादा सतर्क है...लेकिन राजनीति में कुछ भी संभव है। जब यूपीए के कद्दावर सहयोगी लालू-पासवान और मुलायम यह सपना देख सकते हैं तो फिर नीतीश क्यों नहीं. आखिर हैं तो सब गुरुभाई ही... खैर, चार चरणों के मतदान हो चुके हैं. आखिरी चरण का चुनाव भी बहुत दूर नहीं , तो १६ मई का इन्तजार कर लेना ही मुफीद होगा...फिर किसी हजाम से इसपर बहस करने कि गुन्जायिश ही नहीं बचेगी कि माथे पर कितने बाल हैं. जैसे ही वोटिंग मशीनें अपने अन्दर छिपे राज उगलने शुरू करेंगी...बालों कि गिनती स्पष्ट होती चली जायेगी और पीएम इन वेटिंग/ सेटिंग का सिलसिला भी ख़त्म हो जायेगा।
आलोक सिंह "साहिल"
रविवार, 10 मई 2009
इन्तजार कर लेना ही मुफीद होगा...
लेबल:
अपनी भाषा,
इस्लाम,
ऐय्याश,
क्षेत्रवाद,
दुनियादारी,
देश,
धमाके,
भाषावाद,
मानवाधिकार,
राजनीति,
व्यंग्य,
शोहरत,
संस्कृति,
हराम
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
10 टिप्पणियां:
बिलकुल सही कहावत कही आपने...
अब जब छुडा चलना शुरू ही हो गया है तो इसबात के लिए क्या परेशां होना की कितने बात और किस रंग के बाल...सब सामने ही गिरेगा...
Alok ji apne tau pure pandhrawe Lok sabha chunav ka chitha khol ke rakh diya.politics is quite unpredictable.let's wait for the result.
nice blog.
Per kya karein Alok Ji in netaon se intezar hi to nahi hota...Aap ke is lekh se aik baat aspasht taur per nazar aayi ki...Sab ko kursiyon ki padi hai...Fir ye saari partiyan Vikas ki baatein kyon kar rahi hain?...Durbhagya ye hai ki Janta bhi asmanjas mein hai ki Hamaara P M kaun ho.....Kya hum is blog mein unhi ke baarein mein padh rahe hain jo Hamare desh ki baag dor sambhalne wale hain...Prateekaatmak taur pe ye baag dor to sambhalenge magar is desh ki Raksha,Unnati aur Vikas ke liye Bhagwan ko ye Baag dor Khud apne haathon mein rakhni hogi..Warna abhi to ye partiyan alag alag kheme bana rahi hain..wo din door nahi jab is desh ki janta apne khemein alag alag banaye...Well said....Intezar karte hain 16 May ka ye intezar kar lena hi mufeed hoga.
It is nice to see any Blog after a long period...I hope it will continue..
आलोक भाई अच्छा विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
राजनीतिक विश्लेषण करे कोई तो आप सा...
नेताओं की क्या है..उनकी तो जैसे तैसे निकल ही जायेगी. भुगते बेचारी जनता
पीएम वेटिंग/सेटिंग का असली सिलसिला तो सोलह के बाद ही शुरु होगा। मुखौटे भी तभी उतरेंगे और अभी तक अपने को नकाब में छिपाए चेहरे उजागर होंगे।
१६ को होने वाली है वोटों की कौन्टिंग,
मसरूफ राजनीती है सोलह श्रींगार में ,
हेर इक को अपनी जीत कर पूरा यकीन है ,
संसद भवन बसा है दिल ए बेकरार में.
good dear, overall a complete pack.
एक टिप्पणी भेजें