मंगलवार, 22 अप्रैल 2008

बेटी

माँ तुम्हारी कोख में मैं पल रही हूँ,
तेरी रंगत रूप में मैं ढल रही हूँ.
सोंचती हूँ मैं हूँ खुशियों का सितारा,
वार देगी मुझपे अपना प्यार सारा।

प्यार देती चाहे कोई दगा भी देता,
प्यार से कोई गले लगा तो लेता।
क्या पता था तेरी चाहत और कोई,
पैदा होते ही अपना अस्तित्व खोई।
माँ मैं तेरे ही शरीर का एक टुकडा,
सुन सकूंगी तेरा मैं हर एक दुखडा।
मैं हूँ बेटी तेरी चाहत एक बेटा,
प्यार से कोई गले लगा तो लेता।
अब मेरा दुनिया में आना हो गया है,
क्यों हर एक अपना बेगाना हो गया है?
है नहीं तुझको मेरा जीना गंवारा,
शून्य में ही ठीक थी मुझे क्यों पुकारा?
मुझ कलि से आँगन अपना सजा तो लेता,
प्यार से कोई गले लगा तो लेता।

तू भी तो है एक बेटी आज माँ है,
फ़िर तेरी गमगीन क्यों ये आशियाँ है?
क्या तेरी ममता भी झूठी हो गई है?
स्नेह की गंगा भी सूखी हो गई है,
मेरे रागों स्वर को कोई गा भी लेता,
प्यार से कोई गले लगा तो लेता।
अश्वनी गुप्ता

1 टिप्पणी:

रंजू भाटिया ने कहा…

अब मेरा दुनिया में आना हो गया है,
क्यों हर एक अपना बेगाना हो गया है?
है नहीं तुझको मेरा जीना गंवारा,
शून्य में ही ठीक थी मुझे क्यों पुकारा?

दिल को छू गई यह रचना ..बहुत ही भाव पूर्ण है .