Tuesday, 13 May 2008
क्यों ना मैं पत्रकार बन जाऊँ
बहुत भाता मुझे नेताओं के पीछे मंडराना
चाहता हूँ मैं भी किसी के बेडरूम की फिल्में बनाना
क्रिकेट भी जानता हूँ,
खली को भी पहचानता हूँ,
भाते हैं मुझको राखी के नखरे,
करते हैं तंग क्यों मल्लिका को छोकरे,
भूत प्रेत के ढेरों मंतर हैं आते,
सेक्स के सीडीज मुझको भी भाते पसंद है
मुझको भी करना कास्टिंग काउच
बेंच सकता हूँ ख़बरों को
लगाकर नमक मिर्च
कर सकता हूँ
मैं भी फर्जी स्तिंग्स
तो क्यों न मैं पत्रकार बन जाऊं
शिल्पा से योग के राज पूछना चाहता हूँ ,
करीना और सैफ के
पीछे पीछे भागता हूँ काले
हैं क्यों बाबा रामदेव के बाल?
पिटती जब कैट तो मचता क्यों बवाल?
गुस्से में तनु क्यो होती है लाल?
आते हैं मुझको ऐसे ढेरों सवाल
टू बन जाऊँ मैं भी खोजी पत्रकार
धोनी के बाल क्यों लगते हैं सेक्सी?
यूवी को दीपिका ने पहनाई क्यों टोपी?
गिल को गिल से क्यों है ऐतराज?
दफ़न हैं ऐसे ही ढेरों दिल में राज
किसका है तुमको अब इन्तजार?
अब तो बना दो न मुझको पत्रकार
आलोक सिंह "साहिल"
शुक्रवार, 30 मई 2008
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4 टिप्पणियां:
Intersting. :)
बन जाओ भई। बड़ी जरूरत है
सारे के सारे गुण मौजूद हैं.
आपको कोई नहीं रोक सकता. वो क्या कहते हैं अंग्रेजी मे.
"sky is the limit"
:) :) :)
बहुत अच्छी और धारदार व्यंग्य कविता लिखी आपने.
बधाई.
मेरी ओर से भी बधाई.
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