यह एक राजनीतिक साजिश है...
बचपन से ही मेरे मन में एक फँतेशी थी कि काश मैं भी किसी अदालती करवाई को देखता.बड़े होने के साथ-साथ ये शौक भी बढ़ता गया,पर इन दिनों कुछ अलग ही बात हुई.जब भी सुबह पेपर खोलता कोई न कोई अदालत का मामला देखने को मिल जाता,सच कहूँ तो मेरा शौक सर चढ़ने लगा.वैसे फिल्मों में तो बहुत बार देखा,अब तो न्यूज़ चैनल्स वाले भी हमारी इस फैंतेशी को समझने लगे हैं,पर दुःख वही कि सच्ची वाला नहीं देख पाए. तभी अचानक अखबार के फ्रंट पेज पर एक बहुत बड़ा हाई प्रोफाईल मामला दिखा,जिसका फ़ैसला दूसरे दिन होना था.मामला कुछ यूं था... एक लड़की के प्रेमी को लड़की के दो राजकुमार भाईयों ने पहले हथौडे से कुंच कुचकर चोखा बनाया,फ़िर स्वाद नहीं जंचा तो तेल से फ्राई भी कर डाले.अरे भाई,भर्ता...! अब ये अलग बात है कि ८० रुपये लीटर वाला सरसों का तेल नहीं मिला तो जल्दबाजी में गाड़ी के पेट्रोल से ही काम चला लिए.अजी,पेट्रोल फ़िर भी ५० रुपये लीटर है.तो खैर,अख़बार में पढे तो हमारे शौक को पर लग गए.पहली बात तो ये कि इस मामले की सुनवाई जिस अदालत में होनी थी वो मेरे कमरे के पास में ही था और दूसरा ये कि मामला दो हाई प्रोफाईल घरानों का था तो कुछ हाई प्रोफाईल लोगों को अपनी नंगी आंखों से देखने का मौका भी मिल जाएगा,वैसे भी किसी को नंगी हालत में देखने के बाद उससे मेल जोल बढ़ाना आसान हो जाता है.दूसरे दिन हम भी नहा धोकर क्रीम-पावडर पोत कर पहुँच गए अदालत.. अदालत की करवाई शुरू हुई.........दोनों राजकुमार,मुलजिम बने अदालत में खड़े थे,कसम से हम तो बस उन भोले भाले राजकुमारों को ही निहारने में लगे थे.अजी,घर में काँटा चम्मच से खाने और नैपकिन से मुंह पोंछने वालों को लोहार्गिरी नहीं जंचती न.ये दोनों तो समाज के हाशिये पर आ चुके बेचारे लोहारों के रोजी रोटी से ही खिलवाड़ करने लगे थे.सो,सजा तो मिलनी ही थी. ज्योंही जज साहब ने राजकुमारों को ताउम्र वनवास का फैसला सुनाया,दोनों राजकुमारों के गोरे चेहरों पर सफ़ेद आभा झलकने लगी.राजकुमारों के वनवास की बात सुनकर माताएं रो पड़ीं,उधर, शहीद प्रेमी की माँ और भाई अपनी गौरवमय खुशी छुपाने के लिए एक दूसरे को आलिंगनबद्ध कर लिए.बड़ा ही इमोशनल सीन क्रिएट हो गया था. तबतक बाहर से शोर आने लगी,...जिन्दाबाद,...मुर्दाबाद.... राजकुमारों के चाहने वाले अदालत के बाहर नारेबाजी करने लगे(एकदम से रामायण के वनवास का दृश्य स्मरण हो आया.) इसी बीच,चकमक चकमक करके फोटो शेषन शुरू हो चुका था,लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ अपनी मजबूत पहुँच प्रदर्शित करने में लगा था,रह रह कर फोटो शेषन के बीच में एक घुटी सी आवाज गूंज उठती-"यह एक राजनीतिक साजिश है,सियाशी कारणों से हमें फंसाया जा रहा है." कैमरे के फ्लैश अब भी चमक रहे थे,और इस तरह एक बड़े लोकतंत्र का हिस्सा बनते हुए भारी मन से मैं अपने कमरे का रुख कर चुका था.
आलोक सिंह "साहिल"
3 टिप्पणियां:
बहुत ही शानदार,मजा आ गया.बहुत करारा मारा है आलोक जी,
बहुत ही जबरदस्त लिखा है ..पर इस से यह तो पता चला कि न्याय होता है ..व्यंग आप खूब लिख लेते हैं .लिखते रहे
बहुत बढ़िया चित्रण किया है इस हाई प्रोफाईल ड्रामे का-टीवी पर देखा उनको कहते कि हमारे साथ साजिश हुई है-बहुत मासूम सा चेहरा बनाये.
जारी रहिये.
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