दस का दम:शोर पुरजोर पर पानी फ़िर भी कम
भारतीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया का यह शैशवकाल है,इस बात से असहमत नहीं हुआ जा सकता है।इस अवस्था में वृद्धि बहुत तेजी से होती है,तमाम आयामों में विस्तार भी द्रुतगामी होते हैं.पर दुर्भाग्य से उस वक्त आप यह नहीं तय कर सकते कि विस्तार किस दिशा में हो,बस विस्तार हो जो कि हो रहा है. इलेक्ट्रोनिक मीडिया में,बात करें मनोरंजन के चैनलों की तो सालों तक सास-बहू के झमेले दिखाने और इससे पैसे बनाने के बाद उनको हिट होने का एक नया शिगूफा मिल गया है,reallity shows.कभी बिग बी ने लोगों को करोड़पति बनाया(लोग बने या न बने,ख़ुद दिवालियेपन से उबरकर अरबपति बन गए.) तो कभी किंग खान ने गद्दी हथियाई.कभी गोविंदा तो कभी संजू. कभी कोई तो कभी कोई. इन दिनों स्टार वालों ने शाहरुख़ को लेकर "क्या आप पांचवीं पास से तेज हैं?"शुरू किया तो बालीबुड के दूसरे खान यानि हमारे सल्लू मियां ने भी कमर कस ली,उनका साथ दिया सोनी इंटरटेनमेंट वालों ने,और साथ ही दिया हर एपिसोड के तकरीबन एक करोड़ रुपये,नाम रखा "दस का दम". चूँकि,इसके माध्यम से सलमान पहलीबार छोटे पर्दे पर उतर रहे थे तो दर्शकों में रोमांच भी बहुत था कि कोई explosive package ही होगा.धीरे धीरे इसके प्रोमो ने टीवी चैनलों पर अपना जलवा दिखाना शुरू किया.लोगों को लगा ओजी,ये तो बम है.तरह तरह से इसको प्रचारित प्रसारित किया गया.कभी सल्लू बनियान में दिखते तो कभी माथे पर सब्जी लिए. खैर,वह शुभघड़ी (शायद) भी आ गई जब "दस का दम" का पहला एपिसोड दर्शकों के सामने परोसा गया.हमने भी अपने चश्मे को दुरुस्त करते हुए नजरें टीवी पर गडा दीं,क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि इस कार्यक्रम का कोई भी पहलू हमसे छुट जाए.पर ये क्या?इसमें तो केवल शोर ही शोर है.भौंडे सवालों और घटिया व् बेशर्म जवाबों की भरमार है.बुरा लगा,पर क्या करें,अब सलमान से इससे अधिक की अपेक्षा करना भी बेमानी ही है. यही क्या कम है कि बेचारा अपनी reallity को छोटे परदे पर भी कायम रखा? बेचारे चैनल वाले भी क्या करें?उन्हें भी तो भेंडचाल में ख़ुद को बनाये रखना है.आख़िर ये उनके अस्तित्व कि लडाई जो ठहरी.वैसे भी उनका दबाव समझा जा सकता है.किसी एक दिन के ६,७ घंटे के लिए डेढ़ दो-करोड़ रुपये खर्च करना मायने रखता है.अब इतना खर्च करने पर इसकी भरपाई भी तो होनी ही चाहिए.यही कारण है कि अश्लील भाषा से लेकर अश्लील हरकतें(तथाकथित माडर्न भाषा शैली.) तक सभी कुछ झोंक दिया पर फ़िर भी पानी कम. सच कहें तो टीआरपी की गलाकाट प्रतिस्पर्धा में और कुछ हुआ हो या न हुआ हो पर मनोरंजन नामक बला की बुरी तरह बज चुकी है.टीआरपी के नाम पर सब जायज है.अब ख़ुद मनोरंजन को भी ख़ुद पे शर्म आती होगी कि वह कितने ही चैनलों और स्टारों के मानसिक दिवालियेपन की वजह बन बैठा. इस कार्यक्रम में सबकुछ रखा गया जो की किसी कार्यक्रम के हिट होने के लिए अपेक्षित है फ़िर भी देखने के बाद यही लगा... दस का दम:शोर पुरजोर पर पानी फ़िर भी कम...
आलोक सिंह "साहिल"
शनिवार, 21 जून 2008
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5 टिप्पणियां:
बहुत ही खरी बात की आपने.सच में,न जाने किसने इस टीआरपी नामक बला को बनाया? मनोरंजन का कबाडा बना दिया.इन लोगों ने.
बनाया तो बड़े गाजे बाजे के साथ पर परिवार के साथ बैठकर देख सकें ऐसा मुनासिब नहीं जन पड़ता.
एकदम बराबर कहा है आपने,ये सारे चैनल वाले मतिभ्रम के शिकार हो गए हैं,कुछ भी दिखाते रहते हैं.
टीवी वालो के पास लगता है अब कुछ दिखाने को बचा नही ..सही लिखा है आपने .. आलोक् सर जी
साहिल ये अर्थ का बाजार है. यहाँ न्यूज़ चैनल में यू ट्यूब के विडियो चल रहे हैं तो मनोरंजन चैनल में सलमान और राखी का भौंडापन दिख ही गया तो क्या बड़ी बात हो गई!!
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