एक नज्म...आपके नाम॥
अब तो आ जा, बहुत तडपाती है तेरी दूरी।
सहरा में चलते चलते प्यास तो लग ही जाती है।
या खुदा काश! वो दिन भी कभी आ जाए,
कारवां आपका मेरे भी रूह में ठहरे।
कह न पाए अब तलक जो लब मेरे,
बात वो मेरी नजर कह गुजरे।
धीरे धीरे आप पर भी हो असर,
जिस गम-ए-इश्क से हैं हम गुजरे।
बिन पिये ये कैसा नशा है साकी?
बन के शैदा वो मेरे ही कातिल निकले.
आलोक सिंह "साहिल"
सोमवार, 30 जून 2008
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14 टिप्पणियां:
वाह वाह!
आपने तो घायल ही कर दिया.लगता है पुराने शौकीन हैं इस दर्द के.
बहुत ही दर्द है हुजुर,क्या माजरा है?
बिन पिये ये कैसा नशा है साकी?
बन के शैदा वो मेरे ही कातिल निकले.
क्या खूब कही है,मजा आ गया.
बहुत ही गहराई तक उतरी है दिल में.
लगता है दर्द का नश्तर बहुत भीतर तक समां गया है आप में.
चिंता नही गुरु,वक्त मरहम लगा ही
देगा.
या खुदा काश! वो दिन भी कभी आ जाए,
कारवां आपका मेरे भी रूह में ठहरे।
कह न पाए अब तलक जो लब मेरे,
बात वो मेरी नजर कह गुजरे।
ठीक तो है न आप आलोक शाहब जी !!!यह क्या रोग लगा बैठे छोटी सी उम्र में :)..वैसे बहुत ही अच्छा लिखा है ..कोई और अब आपकी रूह में उतरे न उतरे आपके लफ्ज़ उतर गए दिल में हमारे ..बहुत खूब लिखते रहे ..
ye dard bhari dastan!
achchee nazm likhi hai--
धीरे धीरे आप पर भी हो असर,
जिस गम-ए-इश्क से हैं हम गुजरे।
बिन पिये ये कैसा नशा है साकी?
बन के शैदा वो मेरे ही कातिल निकले.
wah gazab bahut hi badhiya,badhai
धीरे धीरे आप पर भी हो असर,
जिस गम-ए-इश्क से हैं हम गुजरे।
बिन पिये ये कैसा नशा है साकी?
बन के शैदा वो मेरे ही कातिल निकले.
beautiful....बहुत खूब....
तो इन बारिशो का असर आप पे भी है
वाह, वाह, वाह।
अच्छी रचना के लिये बधाई
वाह जी, बहुत बेहतरीन.
बात वो मेरी नजर कह गुजरे।
धीरे धीरे आप पर भी हो असर,
जिस गम-ए-इश्क से हैं हम गुजरे।
बिन पिये ये कैसा नशा है साकी?
बन के शैदा वो मेरे ही कातिल निकले.
bahut khoob dost.....dard ubhar aaya hai..
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