आज मैं बाईस का...अलविदा... हरबार की तरह इसबार भी कुछ आशाओं,कुछेक निराशाओं ,कुछ अजीज सफलताओं तो कुछ क्षणिक विफलताओं के पुलिंदे को गट्ठर बनाकर जब अपने यादों के पिटारे में डालने के लिए उसे खोला तो पाया सभी पुलिंदों ने अपने चेहरों पर मुस्कराहट सजा रखी है.पता नहीं उनकी मुस्कराहट क्या बयां कर रही थी?शायद यही कि बेटा खुश हो ले,आज तूने एक और साल खो दिया. यह बात मन में आते ही मैंने विरोध करना चाहा,कि नहीं...नहीं....मैंने खोया नहीं बल्कि..इसे जिया है,तब तक बहुत देर हो चुकी थी.पिटारा ख़ुद बखुद बंद हो चुका था.शायद अगले साल खुलने की तयारी करने. खैर,थोड़ा तस्कीन से जब सोंचने बैठा तो तमाम उमंगें जवां होने लगी,शायद सफलता की कुछ बहुप्रतीक्षित इबारतें इसबार लिखी जायें.पर फ़िर भी मैं ख़ुद को किसी एक बात पे संतुष्ट नहीं कर पा रहा हूँ कि मैं खुश हूँ या उदास?अब बात ये भी है कि खुशी किस बात की?या उदासी का क्या सबब हो सकता है? एक बड़ी खुशी जो हो सकती थी वो तो पिछली बार ही पिटारे में पहुँच चुकी थी तब मैं वयस्क हुआ था. आज रह रहकर वो पल मुझे गुदगुदा रहे हैं,जब मैं २१ का हुआ था.तब मैं खासा प्रसन्न था वरन उससे अधिक उत्साहित था.बचपन से ही मन में फैन्तेशी थी कि कब मैं बड़ा होऊं और बड़ों के बड़े बड़े काम बेझिझक कर सकूँ? मैं अपने घर में सबसे छोटा हूँ तो शायद इसलिए भी यह ग्रंथि मन में थी कि अब मैं बच्चा नहीं हूँ बड़ा हूँ.कोई चाहकर भी मुझे बच्चा नहीं कह सकेगा. पर आज मैं दुखी हूँ,मुझे मेरा बचपन आज बहुत आकर्षित कर रहा है,रह रहकर मुझे चिढा रहा है.अब मैं पहले जितना आजाद नहीं रहा.तमाम जिमेदारियां,तमाम चिंताएँ.जी करता है सारी मर्यादाएं तोड़कर एकबार फ़िर अपने शुरूआती पुलिंदों में खो जाऊँ.पर मर्यादाविहीन होकर भी जिया जा सकता है क्या...? शायद तब मैं यह नहीं सोंचता था,क्योंकि मर्यादा नामक चीज तब मेरे पल्ले ही नहीं पड़ती थी. पर धीरे धीरे इस एक साल में मैंने हकीकत के साथ समझौता कर लिया है ( इंसानी जिंदगी में कितने ही समझौते करने पड़ते हैं,काश हम angel होते!!)जान लिया कि यही सच्चाई है और इसी के साथ जीना है.जीना है उसे जिसे हम जीवन कहते हैं.दुहाई हो ऐसे जीवन की. अब तो घंटी बज चुकी है.मेरे प्रिय पुलिंदे, तुझे जाना ही होगा क्योंकि अब कोई और तेरी जगह लेने को बेकरार है.न चाहते हुए भी तुझसे अलविदा कहना पड़ेगा,क्योंकि चाहते हुए भी तुझसे मिलने का वक्त नहीं निकल पाउँगा,क्योंकि जन्दगी में रिवर्स प्रोसेस नहीं होता.मैं कोशिश करूँगा कि इस नए वाले के साथ ताल्लुकात अच्छे बना सकूँ और कभी क्षणभर के लिए ही सही ख्यालों और कल्पनाओं में ही सही तुझसे गलबहियां कर सकूँ. खुशी है कि आज तक तूने हर वक्त मुझे हंसने और खुश होने का मौका दिया,बदले में मैंने भी तुझे बेपनाह प्यार किया.तुम मुझे ग़लत न समझना क्योंकि धन्यवाद कहकर तुझे शर्मिंदा नहीं कर सकता.अरे.............मैं किस्से बात कर रहा हूँ?तू तो कबका पिटारे में जा चुका है.ओह...तेरी यादें...कमबख्त...अलविदा अलविदा अलविदा....... शेर मेरे कहाँ थे किसी के लिए, मैंने सबकुछ लिखे थे तुम्हारे लिए. अपने सुख दुःख बड़े खुबसूरत रहे,हम जिए भी तो एक दूसरे के लिए.
आलोक सिंह "साहिल"
मंगलवार, 24 जून 2008
आज मैं बाईस का...अलविदा...
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13 टिप्पणियां:
जन्मदिन मुबारक हो भाई जी.आज आप बाईस के हो गए,अब पार्टी हो जाए.
बहुत ही अच्छे तरीके से चित्रित किया अपने इन बाईस वर्षों को,खुदा करे ऐसे ढेरों बाईस आपसे होकर गुजरें.हैप्पी बर्थडे.
आपको पढ़कर बहुत खुशी हुई की आप ख़ुद से इतनी बेपनाह मुहब्बत करते हैं,आपकी सफलता के लिए यह आपका संगी बनेगा.इसी कामना के साथ.जन्मदिवस पे बधाइयाँ.
अरे वाह! आप तो खास जवां हैं और सेंटी भी खास हैं,सही है.शुभकामनाएं.
many many happy returns of the day dear.
ख़ुद की इतनी खूबसूरत अभिव्यक्ति दिल को भा गई.मुबारक हो बंधू.
जितना अच्छा यह जानना लगा की आज आपका जन्मदिन है,उससे कहीं अच्छा आपको पढ़कर लगा.ढेरों शुभकामनाएं.
बधाई जी
janam din ki hardik badhai
जन्मदिन की हार्दिक बधाई आलोक ..दिन बीत जाते हैं पर हर आने वाला साल नई खुशियाँ ले कर आता है .. आपको भी हर खुशी मिले यही दिल से दुआ है
जन्मदिन मुबारक हो ..अनेकों शुभकामनाऐं.
आप सभी को धन्यवाद.निरंतर आपके स्नेह और आशीर्वाद का आकांक्षी..
आलोक सिंह "साहिल"
जन्म दिन मुबारक हो ओर तमाम फलसफो को गांठ बंधकर अलमारी में रख दो...चूंके अभी जिंदगी ने आसमान में पाँव रखे है.....रोज नए तजुर्बे .रोज नए फलसफे....
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