.....मुझको अब महरूम ना कर.
गुरबत की बात हमसे ना छेडो दिलबर,
आँख मेरे रोये हैं विसाल में भी।
बावस्ता रहा हूँ मैं चाँद खुशियों से ही,
तन्हाई की अब रात ना दिखाओ दिलबर।
तेरी हर एक हँसी में घुला है मेरे जिगर का लहू,
मेरे जिगर के टुकड़े को यूँ नीलाम ना कर।
तुम हँसी हो बहुत छुपाने की नहीं बात सनम,
तेरे विसाल को तडपता रहा हूँ सदियों से।
मेरा ईमान भी लुट जाए तो जाने दो सनम,
तेरी बंदगी से मुझको अब महरूम ना कर.
आलोक सिंह "साहिल"
5 टिप्पणियां:
बहुत स्वीट सी गजल hai,
bahut sundar likha hai aapne.
तेरी हर एक हँसी में घुला है मेरे जिगर का लहू,
मेरे जिगर के टुकड़े को यूँ नीलाम ना कर।
बहुत खूब ...सुंदर लिखा है ....
वाह!! बहुत उम्दा.
सुंदर....अति उत्तम।।।।
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