जामिया मिल्लिया इस्लामिया का अंसारी ऑडिटोरियम दर्शकों से खचाखच भरा था,तमाम छोटे बड़े लोग आपनी-अपनी सीटों पर काबिज थे,कुछ, जिनको सीटें मयस्सर नहीं हो सकीं तो सीटों के नीचे कालीन पर ही बैठ लिए,बाकी कुछ जगह जहाँ कहीं बची थी उसे कैमरा वालों और खबरचियों ने भर रखा था.एक कौतूहल सा भर गया था पूरे वातावरण में.इसी बीच मंच पर हलकी सी कुछ सरसराहट हुई,क्षणेक के लिए व्याप्त सन्नाटे के बाद एकाएक पूरा ऑडिटोरियम शोर,तालियों और कैमरे के फ्लैश से भर उठा.मंच पर एक बेहद परिचित और संजीदा सा लगने वाला आदमकद आ चुका था,जिसके दोनों हाँथ बार बार लबों पर जाकर दर्शकों की तरफ़ फ्लाईंग किस उछालने में व्यस्त थे.तबतक पीछे बैठे किसी ने जोर से गला फाडा,"नसीर भाई,सलाम वालेकुम",शायद आवाज उनतक पहुँच नहीं सकी होगी,क्योंकि वे जवाब देने की बजाय मंच पर रखे सोफे पर पसर चुके थे. मंच पर पहले से मौजूद एक प्रस्तोता ने मिसेज किदवई को आवाज लगायी कि वे आयें और 'नसीरुद्दीन शाह' साहब का परिचय कराएं जिनके परिचय की जरुरत इस तीसरी दुनिया में तो कम से कम नहीं ही है.खैर,कुछ एक बेहद भारतीय सरीखे औपचारिकताओं के बाद नसीर साहब कमर कस चुके थे,क्योंकि आज उन्हें वहां दर्शकों से सीधे मुखातिब होकर उनकी तमाम जिज्ञासाओं को शांत करना था.इस मौके पर उन्होंने निजी जिंदगी से लगाये फिल्मों,थियेटर और सामाजिक मुद्दों पर खुलकर जवाब दिए.उन्होंने कहा कि मैं मूलतः थियेटर का इन्सान नहीं हूँ पर मेरी पहली पसंद वही है क्योंकि इसमें सीधे दर्शकों से संवाद करने का मौका मिलता है(हालाँकि ऐसे,मुझे लोगों को फेस करने में असुविधा होती है).एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहाकि आजकल के नए निर्देशकों में काफ़ी क्षमता है और वे सामाजिक सरोकारों वाली फिल्में भी बना रहे हैं.बेशक,७० के दशक में भी सामाजिक सरोकारों वाली फिल्में बनीं लेकिन वे मास्टर पीस कत्तई नहीं थी.चूँकि उस समय के निर्माताओं में आलोचना सहने की क्षमता नहीं होती थी इसीलिए तथाकथित समांतर सिनेमा का अवसान हो गया.जबकि आजकल के निर्माताओं में प्रयोग करने का साहस और आलोचना सहने की क्षमता भी है.यही वजह है कि आज भारतीय सिनेमा फ़कत नाच गाने वाला एक ड्रामा नहीं रहा गया है बल्कि बाहर वाले भी इसे गंभीरता से लेने लगे हैं. जब एक छात्र ने फंडामेंटलिज्म की बात छेड़ी तो उनका कहना था फंडामेंटलिज्म वे लोग हैं जिनके पास अपने ख़ुद के विचार नहीं हैं.साथ ही उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि आज जरुरत इस बात की है कि इस्लाम को जानने के लिए कुरान को न सिर्फ़ पढ़ा जाए बल्कि सही तरीके से समझा जाए और इसके ग़लत इंटरप्रीटेसन से भी बचा जाए. जैसे जैसे नसीर साहब सवालों का जवाब देते गए लोगों में सवाल पूछने के लिए होड़ मचने लगी.ऑडिटोरियम में बैठे सभी के पास कुछ न कुछ पूछने के लिए था.पर वक्त की कमी ने इस सिलसिले को थमने पर मजबूर कर दिया.फ़िर आने का वादा कर नसीर साहब ने रुखसत ली और जाते जाते एक बार फ़िर दर्शकों की तरफ़ फ्लाईंग किस उछालकर उनके प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त किया.इस तरह जामिया मिल्लिया इस्लामिया और वहां उपस्थित लोगों के लिए वह दिन एक तारीख बन गया.
आलोक सिंह "साहिल"
सोमवार, 3 नवंबर 2008
नसीरुद्दीन शाह, तालियाँ,कैमरों के फ्लैश और लोगों का हुजूम
लेबल:
अपनी भाषा,
इस्लाम,
ऐय्याश,
क्षेत्रवाद,
दुनियादारी,
देश,
धमाके,
फिल्मी,
भाषावाद,
मानवाधिकार,
राजनीति,
व्यंग्य,
शोहरत,
संस्कृति,
हराम
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
12 टिप्पणियां:
एक बेहतरीन अदाकार के तौर पर तो मई उनका फैन शुरू से हूँ .पर पिछले दिनों NDTV पर उनका इंटरव्यू देखकर उनका जहीनी ताकत का भी कायल हो गया .साफगोई ओर खरा कहने वाले नसीर भाई सचमुच हिन्दुस्तान के सिनेमा में उस मुकाम का हक़दार है जो उन्हें मिला नही......ओर बतोर इन्सान भी एक शानदार इन्सान है
अजी सर नसीर सर जी की बात ही कुछ् ओर हैं। एक अच्छे कलाकार और एक अच्छे इंसान।
एक अच्छा कलाकार है नसीरुद्दीन
(Bhai Naseeruddin Shah as a actor mujhe pasand hain isme koi shak nahi...kyonki unki adaakaari lajawab hai...jaise doctor anurag unke fan hain main bhi hoon...Haal hee mein nasiruddin shah ki aik film aayee thi wo khuda ke liye thi shayad yahi naam tha us film ka...beshak us film mein unhone achchi adaakari ki magar wo kuch cheezo ke apne hisaab se prove karne me lage rahe jaise ki lyrics musics ko unhone islaam mein jaayez karaar diya hawaala diya aik prophet ka jo hazrat Daud Alaihissalam the..jis tareeke se unhone prove kiya koi bhi wo shakhs jo islaam ke baare mein na jaanta ho usko sahi samajh lega jabki aisa nahi kyonki Daud Alaihissalam ki awaaz sureeli thi unki wo awaaz khuda ko pasand thi na ki khuda ne Musics,lyrics ki ijaazat di..yahan aik sawal padhne ko mila jo ki fundamentalist ke baare mein tha..jaisa ki Nasiruddin shah ka jawab hai agar unki baat ko maanu to aap bataiye ki fir duniya mein kisi dharm ki kya jaroorat hai? Fundamentalists ke baare mein main kuch comments de raha hoon aap usko padhe aur bataayein ki kya Nasiruddin Shah ka jawab munaasib hai
1. Definition of the word ‘fundamentalist’
A fundamentalist is a person who follows and adheres to the fundamentals of the doctrine or theory he is following. For a person to be a good doctor, he should know, follow, and practise the fundamentals of medicine. In other words, he should be a fundamentalist in the field of medicine. For a person to be a good mathematician, he should know, follow and practise the fundamentals of mathematics. He should be a fundamentalist in the field of mathematics. For a person to be a good scientist, he should know, follow and practise the fundamentals of science. He should be a fundamentalist in the field of science.
2. Not all ‘fundamentalists’ are the same
One cannot paint all fundamentalists with the same brush. One cannot categorize all fundamentalists as either good or bad. Such a categorization of any fund amentalist will depend upon the field or activity in which he is a fundamentalist. A fundamentalist robber or thief causes harm to society and is therefore undesirable. A fundamentalist doctor, on the other hand, benefits society and earns much respect.
3. I am proud to be a Muslim fundamentalist
I am a fundamentalist Muslim who, by the grace of Allah, knows, follows and strives to practise the fundamentals of Islam. A true Muslim does not shy away from being a fundamentalist. I am proud to be a fundamentalist Muslim because, I know that the fundamentals of Islam are beneficial to humanity and the whole world. There is not a single fundamental of Islam that causes harm or is against the interests of the human race as a whole. Many people harbour misconceptions about Islam and consider several teachings of Islam to be unfair or improper. This is due to insufficient and incorrect knowledge of Islam. If one critically analyzes the teachings of Islam with an open mind, one cannot escape the fact that Islam is full of benefits both at the individual and collective levels.
4. Dictionary meaning of the word ‘fundamentalist’
According to Webster’s dictionary ‘fundamentalism’ was a movement in American Protestanism that arose in the earlier part of the 20th century. It was a reaction to modernism, and stressed the infallibility of the Bible, not only in matters of faith and morals but also as a literal historical record. It stressed on belief in the Bible as the literal word of God. Thus fundamentalism was a word initially used for a group of Christians who believed that the Bible was the verbatim word of God without any errors and mistakes.
According to the Oxford dictionary ‘fundamentalism’ means ‘strict maintenance of ancient or fundamental doctrines of any religion, especially Islam’.
Today the moment a person uses the word fundamentalist he thinks of a Muslim who is a terrorist.
naseer sahab! aji unke kya kahne,jitne behatarin actor utne hi shandaar insan hain,unke vishay mein padhkar maja aa gaya.
aaj tak yah tamnna dil mein hi rah gayi ki kam se kam ek baar hi sahi naseer sahab ko dekh lun,par.....
aapke madhyam se unko dekh-sun kar bahut achha laga.
thanx
alok ji,aapne bataya nahin ham bhi darshan kar lete.vaise padhkar kaafi kuchh jan liya us tathakathit AADAMKAD ke baare mein.
नासिर जी मेरे पंसदीदा कलकारों में से एक हैं ..आप तो रूबरू हो लिए उनसे :)
कमाल का लिखते भाई . इसे जारी रखो.. आप नसरुद्दीन के फेन होगें लकिन mai तो आप फेन हो गया हूँ
नमस्कार हुसैन भाई,
आपकी प्रतिक्रिया की हमेशा प्रतीक्षा रहती है.आप हर बार बेहतरीन प्रतिक्रिया देते हैं जो कि मेरे ब्लॉग के लिए आशीर्वाद स्वरुप ही होते हैं. सच तो यह है कि अगर आप जैसे पाठक न होते तो मैं कब का ये लिखना पढ़ना छोड़ चुका होता.
खैर,भाई जी,आपने नसीर साहब कि कुछ baaton पर ऐतराज जताया है,
यहाँ पर मैं एक बात कहना चाहूँगा कि जब हम अपनी कोई व्यक्तिगत राय ब्लॉग पे लिख रहे होते हैं तो हमेशा उन बातों कि जांच पड़ताल कर लिखते हैं कि कहीं कोई ग़लत तथ्य न चला जाए.लेकिन जब आप किसी मैटर को रिपोर्ट कर रहे होते हैं तो जो कुछ हुआ होता है उसे as such परोस देना होता है.माफ़ी चाहूँगा पर जिस बात से आपको आपत्ति है वो आपत्ति तो सिर्फ़ नसीर साहब ही दूर कर सकते हैं.
एकबात और कि नसीर साहब एक कलाकार हैं,कोई राजनीतिज्ञ या धर्म्पुरोहित नहीं तो कृपया उनसे एक कलाकार के रूप में उनकी व्यक्तिगत राय कि ही उम्मीद कि जानी चाहिए.
धन्यवाद
आलोक सिंह "साहिल"
हाँ भाई ! आप सही कह रहे हैं ....क्योंकि आपने सिर्फ़ रिपोर्टिंग की है ...मैं परेशान सिर्फ़ इस बात पर था की आलोक जी से इतना अहम् बिन्दु छूट कैसे गया...उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया क्यों नही दी ? मगर अब समझ में आया की रिपोर्ताज लिखते वक्त आप सिर्फ़ वक्ता की बात लिख सकते हैं ..अपनी प्रतिक्रिया नही..ओके मुझे बात समझ में आ गई है...वैसे अजिर भाई की बातों पर ध्यान दीजिये आपको राज ठाकरे जैसे मुद्दे पर लिखना चाहिए .......क्या आपको नही लगता की सस्ती पुब्लिशिटी की खातिर राज ठाकरे महाराष्ट्र को ६० के दशक में पहुंचाने का काम कर रहे हैं ...जैसा की उनके चाचा बाल ठाकरे पहले से करते आ रहे हैं ...
kya kikhte ho yarrrrrrr. it is nice to me......
एक टिप्पणी भेजें