विलम्ब के लिए माफ़ी,क्योंकि तमाम ब्लॉगर साथियों ने जिस मुद्दे पर कोहराम मचा रखा है उसमें मैं पिछड़ गया.मैंने कल ढेरों ब्लॉग पढ़े और लगभग सभी में एक सी ही बातें और प्रतिक्रियाएं थीं.वो क्या थीं बताना अब जरुरी नहीं रह गया.सोंचा मैं भी इस जमात का हिस्सा बन जाऊं. कुछ लोगों ने इसे दुर्भाग्य करार दिया.उनका कहना था कि वैसे तो वे दिल्ली में नहीं थे या किन्ही कारणों से नहीं थे और अगर मौके पर मौजूद होते तो भी वे हिन्दयुग्म के उस वार्षिकोत्सव में नहीं जाते जहाँ,कलम के स्वामी माननीय राजेन्द्र यादव जी मुख्य अतिथि के रूप में पधारे थे और अपने आशीर्वचनों से सभी हिन्दी प्रेमियों को अभिभूत कर दिया.औरों का तो मैं नहीं जानता पर मेरे लिए यह परम सौभाग्य की बात थी कि मैं उस सफल आयोजन का हिस्सा था. बहुत बवाल मचा कि राजेंद्र जी ने ये कहा,वो कहा,वगैरह वगैरह..असल बात यह है कि ये सारा बवाल उनलोगों ने खड़ा किया जो ख़ुद मौके पर मौजूद नहीं थे और सुनी सुनाई बातों पर ही कान देते रह गए.अब इतनी बात हो ही गई तो ये उल्लेख कर ही देते हैं कि उन्होंने कहा क्या...वैसे तो उन्होंने काफ़ी कुछ कहा पर उसमें ढेर सारा हिन्दयुग्म के बारे में था,अब बात करते हैं उन बातों का जिन पर उत्पात मचा हुआ है,उन्होंने कहा-
-हमें १६वीं सदी के पहले के साहित्य को बक्सों में बंद कर देना चाहिए क्योंकि उनसे आज की पीढी,यूँ कहें हिन्दी को कोई लाभ नहीं.उन्होंने ये नहीं कहा कि आप बिल्कुल उन्हें मत पढ़ें,ये आप की मर्जी.अपने बृज,अवधी और ऐसी तमाम भाषाओँ सम्बन्धी लिप्सा को जमकर बुझाईये पर इस चक्कर में इस पीढी या खासकर आनेवाली पीढी को तो कम से कम मत ही तंग करिए जिसके लिए पैदा होते ही लक्ष्य थमा दिया जाता है कि तुम्हे अंग्रेजी आनी चाहिए,उससे निपटे तो फ्रेंच,जर्मन और ऐसी तमाम भाषाओँ को भी जानना है,इसी बीच हिन्दी तो सीखनी ही है.फ़िर क्योंकर बोझ लादना? वैसे भी एक तरफ़ तो हम आधुनिकता का दम भरते हैं दूसरी तरफ़ रुढियों में जीने का शौक भी पाल रखे हैं.मुश्किल है जी.दोगलापन केवल हमारे नेतागणों को ही शोभा देता है.- दूसरी बात ,वे मंच पर बैठे हुए,अपनी पाईप से धुंए उडा रहे थे,अपना-अपना तकाजा है इस बात पर,हो सकता है कि आप ख़ुद ही खुन्दस खाए हों,अरे भाई कभी सुट्टा के चक्कर में पाकेट ढीली हुई हो,तो इसके लिए आप दुसरे को क्यों नोचने पर अमादा हैं.मैं ये नहीं कहता कि नियम तोड़कर सार्वजनिक जगह पर धुम्रपान अच्छी बात है,पर इसके लिए आप कान तो मत ही खाईये .इसके लिए हमारे स्वस्थ्य मंत्री ही काफ़ी नहीं क्या?
- तीसरी बात उन्होंने कही कि अगर हिन्दयुग्म के लोग सिखाने को तैयार हों तो इस उम्र में भी मैं ब्लॉगर बनना पसंद करूँगा ,क्योंकि दोजख की जबान भी तो यही होगी,अब इसमें क्या ग़लत है भाई?आप ख़ुद दिनभर नेट पर बैठकर टिपटिपीयाते रहते हैं पर जब एक उम्रदराज आदमी वही चीज सीखना चाहता है तो आपत्ति क्यों? समझ से परे है,ये सबकुछ अजी ,अब इतने retrogessive होकर रहेंगे तो तकलीफ होगी,वक्त के साथ,पजामा छोड़कर सूट और खडाऊं छोड़कर स्टायलिश जुटे पहनना तो मंजूर कर लिया पर भाषा की बात आते ही रुढियों की दुहाई... माफ़ी चाहूँगा,एक बात और मैंने पढ़ी थी उसका उल्लेख करना भूल गया.कुछ साथियों ने ये लिखा था की वे ट्राल हैं,अजी ,क्या कम से कम भारत में राजेन्द्र यादव को इसकी जरुरत है ?उल्टा चोर कोतवाल को दांते,ख़ुद राजेन्द्र यादव के साथ जुड़कर थोडी शोहरत बटोर पाने की जुगत में जाने कब आप ख़ुद ट्राल हो गए और दोष देते हैं॥यादव जी को,ये तो बेनियाजी है गुरु...कुछ बुरी लग सकने वाली बातों और शब्दों के लिए सभी ब्लॉगर साथियों से फ़िर माफ़ी...
आलोक सिंह "साहिल"
बुधवार, 31 दिसंबर 2008
ब्लॉगर साथियों माफ़ करना....
लेबल:
अपनी भाषा,
इस्लाम,
ऐय्याश,
क्षेत्रवाद,
दुनियादारी,
देश,
धमाके,
भाषावाद,
मानवाधिकार,
शोहरत,
संस्कृति,
हराम
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
5 टिप्पणियां:
नववर्ष की आपको व आपके परिवारवालों को हार्दिक शुभकामना और बधाई . आपका भविष्य उज्जवल हो की कामना के साथ .
महेंद्र मिश्रा जबलपुर
आपको, आपके परिवार को पाश्चात्य नववर्ष 2009 की शुभकामनायें
एक विनम्र अनुरोध: अपने लेखों को चार-छह पैराग्राफ में बाँट दिया करें। हम जैसों को रूचि के साथ-साथ आसानी होती है
नया साल आए बन के उजाला
खुल जाए आपकी किस्मत का ताला|
चाँद तारे भी आप पर ही रौशनी डाले
हमेशा आप पे रहे मेहरबान उपरवाला ||
नूतन वर्ष मंगलमय हो |
गुस्सा थूकिये...ये सब चलता रहता है...
आप को नव वर्ष की शुभ कामनाएं...
नीरज
alok ji,ab jab sabhi ne kah diya to maan hi lijiye,happy new year.
एक टिप्पणी भेजें