हद है शराफत की,कि.....
मुझे जहाँ तक याद है,शायद मई २००५ की २९ तारीख थी।फ़िल्म काल का फर्स्ट डे,फर्स्ट शो था,मैं ब्लैक टिकट लेकर फ़िल्म देखने पहुँचा।क्रेज जो इस फ़िल्म से जुडा था कि इसमे मेरे शाहरुख़ ने डांस(आईटम) किया है।खैर,फ़िल्म शुरू हुई,फ़िल्म के शुरुआत में ही शाहरुख़ ने जालीदार बनियान में जो धमाल मचाना शुरू किया तो मैंने अपना माथा पीट लिया,सच कहूँ तो मैं बहुत आहत हुआ था।
"क्या रे शाहरुख़,कितना गन्दा दिख रहा है तू?" यही बात मेरे मन में आई थी।तब मैं शायद उतना परिपक्व नहीं था, बाद में महसूस हुआ(कुछ दोस्तों ने बताया)।ऐसा नहीं कि उसके पहले किसी हीरो ने ऐसा नहीं किया था,सलमान आदि का पेशा ही इसपर चलता था,पर बात थी पूरे देश के सबसे पारिवारिक और चहेते चेहरे की।जिसपर हर परिवार आँख मूंदकर विश्वास करता था।
इसके बाद समय चक्र बढ़ता गया,अब सलमान,शाहरुख़ ही नहीं कुछ एक को छोड़कर आजकल का लगभग हर हीरो ऐसा करने लगा है।
बात असल यह नहीं है की आजकल के हीरोज फिल्मों में आईटम करते हैं,बात कुछ और है,पहली यह कि क्या आजकल के फिल्मकार फ़िल्म बेचने के सहज तौर तरीके भूल गए हैं?दूसरी ये कि क्या आजकल के फ़िल्म स्टार अपनी अदाकारी के बूते पैसा और शोहरत कमाने में नाकाम होने लगे हैं?
शायद इसका जवाब नकारात्मक ही होगा।तो फ़िर क्यों?
आप कहेंगे कि पहले की फिल्मों में भी आईटम होता था,तो वे मूलतः हीरोइनों पर फिल्माए जाते थे,कारण कि आज भी बालीबुड की ९५ फीसदी फिल्मों में हीरोइनों के लिए नाचने गाने और शरीर दिखाने के अलावा कुछ नही होता,तो उनके रोजी रोटी की बात समझ में आती है।पर क्या मज़बूरी है हमारे स्टार हीरोज की? वे तो पहले ही फिल्मों से करोड़ों कमा रहे हैं।
तर्क दिए जा सकते हैं की वे वही करते हैं जो लोग देखना पसंद करते हैं,सिर्फ़ यही बिकता है।मैं इससे सहमत नहीं हूँ,क्योंकि अगर ऐसा होता तो दीनो मोरिया टाइप के हिरोज की सभी फिल्में ब्लास्टर हिट होतीं।अजी दर्शक भी तो वही देखेगा न जो उसे दिखाया जाएगा।
शायद आजकल के हिरोज ख़ुद को सबकुछ करते देखना चाहते हैं।यही कारण है कि उन्होंने अपनी मर्यादा और दर्शकों की भावनाओं का जमकर दोहन करना शुरू कर दिया है।क्योंकि वे रील के हीरो हैं रियल के नहीं।गलती आम दर्शकों की है जो हीरोज से बड़ी बड़ी अपेक्षाएं रख लेते हैं।पर
क्या इन अपेक्षाओं की सजा इतनी भयंकर कि अपने पसंदीदा स्टार को नंगी छोकरियों के बीच में तलाशना पड़े?
हद है शराफत की,कि नाम ही शराफत है....
आलोक सिंह "साहिल"
शुक्रवार, 30 मई 2008
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3 टिप्पणियां:
लगभग सुंदर
आलोक जी
स्वागत है । अच्छा लिखा है और प्रभावी भी लिखा है। इसी प्रकार लिखते रहें। सस्नेह
बहुत अच्छे यहाँ भी............
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