शुक्रवार, 4 जुलाई 2008
नमूने...एक से बढ़कर एक!!
नमूने...एक से बढ़कर एक!! भारत एक स्वतंत्र गणराज्य है,यहाँ के नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली हुई है.हर एक व्यक्ति की अपनी शैली है,अपना अंदाज है.कोई तो स्लैंग्स का प्रयोग ज्यादा करता है तो कोई रुक रुक कर बोलता है.पर कहीं न कहीं सबका एक ही मकसद होता है ख़ुद को अधिक माडर्न या औरों से अलग सिद्ध करना. इस मामले में हमारे टीवी चैनल वाले और हमारे फिल्मी हीरो भी पीछे नहीं हैं.आख़िर हों भी कैसे?आपने वह सूक्ति नहीं पढ़ी क्या,सिनेमा समाज का आईना होता है. आते हैं मुद्दे पर.हाल ही में हमारे एक मनोरंजन चैनल ZTV ने एक नया कार्यक्रम शुरू किया.reallity shows की रंगरूट दौड़ में एक नया रंगरूट.शो शुरू करने के पहले कार्यक्रम के निर्माता निर्देशकों के सामने बड़ी समस्या थी कि आजकल तो बहुतेरे स्टार टीवी पर reallity shows प्रस्तुत करते हैं,फ़िर इसे अलग कैसे बनाया जाए,उनकी इच्छा थी कि कार्यक्रम को नमूना बना दिया जाए.इसके लिए उन्हें तलाश थी एक नमूना दिखने वाले चेहरे की तो लो जी उन्होंने भोजपुरी फिल्मों के स्टार रविकिशन को पकड़ लिया और शुरू कर दिया नाचने गाने वाला एक reallity show. मैंने पहले ही कहा हर इन्सान की अपनी शैली होती है तो रविकिशन भाई का भी अपना अंदाज है,(आखिरकार वो भी स्टार हैं).आजतक उनकी जो पहचान बनी वो भोजपुरी फिल्मों से बनी पर यहाँ तो हिन्दी/अंग्रेजी बोलने उतार दिया वो भी सीधे मंच पर.कार्यक्रम के संचालन से पहले उन्होंने ढेर सारा भोजपुरी का हिन्दी अनुवाद और हिन्दी का अंग्रेजी अनुवाद रटा पर जब मंच पर उतरे तो अपनी असलियत नहीं छुपा सके.शुरू हो गए एक घटिया खिचाडिया अंदाज में.अब उनको कौन समझाए कि ये मॉरिशस नहीं इंडिया है.अरे भाई हम मानते हैं कि भोजपुरी पसंद करने वालों का एक बड़ा वर्ग हमारे यहाँ है पर जो कार्यक्रम पूरे देश में एक साथ चल रहा हो वहां इत्ती घटिया भोजपुरी नहीं शोभती न.अब आप लालू प्रसाद यादव तो हैं नहीं. वैसे ही हमारी भोजपुरी अभी तक एक भाषा का दर्जा नहीं पा सकी है,आज भी उसे आठंवी अनुसूची में स्थान दिलाने के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है,उस पर से तुर्रा ये कि आप उसे आम लोगों के बीच इतने गंदे तरीके से पेश कर रहे हैं.....ग़लत बात.वैसे भी बात किसी भाषा की नहीं है.आप हिन्दी बोलें, भोजपुरी बोलें,अंग्रेजी बोलें या फ़िर कुछ और ही बोलें मुझे कोई आपत्ति नही,पर कृपा करके किसी भी भाषा की टांग न तोडें. आलोक सिंह "साहिल"
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6 टिप्पणियां:
सही चिंतन व्यक्त किया है आपने.
क्या कहें इन भाषाई व्यभिचारियों को,,,,,,,,,,
भाषा के नाम पर तमाशा
कुछ नही नितरा के छितनार हो रहा है .आपके भाषा बोध से परिचित हुआ . सहिये हड्काएं हैं.
हर भाषा को उचित स्थान मिलना चाहिए अच्छा लिखा है आपने ..
बस जी सब बाजार का खेल है बंधू.....
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