फ़िर वो दिन आया और चला गया जब पुराने संदूकों के मुरचा खाए ताले खुले,कुछ रंग बिरंगी आयताकार आकृतियाँ बहार निकलीं,कुछ साफ़ सुथरे कपड़ा पहने सभ्य लोगों ने सुबह सुबह तमाम जगहों पर ३ रंगों वाली आयताकार आकृति को तिरंगे का नाम देकर गौरवपूर्ण अंदाज में फहराया,कुछ फूल धरती पर गिरे,तालियों की गडगडाहट और फ़िर कुछ मिष्ठान के नाम पर लम्बी धक्का पेल लाईनें,और ठीक इसके पहले कुछ घंटों तक हमारे साफ़ सुथरे लोगों ने अपनी साल भर की बचायी हुई जुबानी जमाखर्च का जमकर मुजाहिरा किया,और साथ ही क्षणेक के लिए जागृत हो उठा देश के हर नागरिक के दिल में सरफरोशी की तमन्ना।जी हाँ,आखिरकार कल हमारे आजादी का दिन जो था। इस झंडे वाली सुबह की ठीक पहले वाली रात को होती रही मैसेजिंग की भरमार और आधी रात से ही झंडे वाले पूरे दिन तक मोबाईल की सारी लाईनें व्यस्त रहीं।शाम को जब दिनभर की मेहनत से फुर्सत पाकर जब टी वी/ रेडियो आन किया तो अप्रत्याशित तौर पर धमाकों और हताहतों की खबरें समाचारों से नदारद थीं,उनकी जगह ले रखी थी हमारे नेतागणों की भावानाफोदू भाषण-बाजियों ने जिसे सुनकर रगों का लहू उबाल लेने लगा,पर बरसाती मौसम में पंखे और कूलर की ठंडक लगते ही हमारी पेशियाँ सिकुड़ने लगीं तबतक वक्त हो आया था सपनों में खोने का।हो गया,"स्वतंत्रता दिवस मुबारक" आपको भी,६१वें स्वतंत्रता दिवस की ढेरों शुभकामनाएं.
आलोक सिंह "साहिल"
शनिवार, 16 अगस्त 2008
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3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर लिखा है।
रक्षाबन्धन की बहुत-बहुत बधाई
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रक्षा-बंधन का भाव है, "वसुधैव कुटुम्बकम्!"
इस की ओर बढ़ें...
रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकानाएँ!
सही एवं सटीक कटाक्ष
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