मंगलवार, 19 अगस्त 2008

एक आस,खुशहाली की...

आज जब, एक के बाद एक धडाधड न्यूज और मनोरंजन के चैनल्स खुलते जा रहे हैं और हमारा आम दर्शक कन्फ्यूज हो चला है कि, क्या देखें और किसे देखें?इसी देश में एक ऐसा वर्ग भी है जो आज भी टी वी के सामने ख़ुद को असहाय महसूस करता है।जी हाँ,पुरबिया (भोजपुरिया) वर्ग।ऐसे में १५ से २० करोड़ की इस आबादी को लक्ष्य कर शुरू किया गया भोजपुरी भाषा का पहला चैनल "महुआ" काफ़ी सुकून देनेवाला है। बात करें क्षेत्रीय भाषा के चैनल्स की तो,आज की तारीख में बांग्ला से लगाये गुजरती,मराठी,पंजाबी,तमिल,तेलगु,मलयालम आदि लगभग हर भाषा के चैनल्स मौजूद हैं,जिनका प्रभाव क्षेत्र कतई अपेक्षाकृत अधिक नहीं है।ऐसे में,इतनी बड़ी आबादी को हमेशा नजरअंदाज किया गया,तब जबकि भोजपुरी का प्रभुत्व भारत से बाहर फीजी,मारीशस और सूरीनाम जैसे देशो तक है। एक अदद भोजपुरी चैनल की इस कमी को देखते हुए मीडिया जगत से जुड़े श्री पी के तिवारी ने तमाम तरह के रिस्कों को दरकिनार करते हुए पहल की।यह निश्चय ही एक बेहद साहसिक और प्रशंसनीय कदम है।इसके लिए श्री तिवारी बधाई के पात्र हैं। साथ ही सभी पुरबिया लोगों के लिए यह एक अविश्वसनीय सी लगने वाली खुशी है। श्री तिवारी के इस हौसले और साहस को देखते हुए बालीबुड में अपनी धमक रखने वाले एक और पुरबिया,प्रख्यात फ़िल्म मेकर प्रकाश झा भी बेहद उत्साहित हैं और उन्होंने ख़ुद को "महुआ" से जोड़ लिया है।ख़बर यह भी है कि वे महुआ के लिए धारावाहिकों का निर्माण भी करेंगे।इससे बड़ी सौगात पुरबिया लोगो के लिए शायद ही कुछ और हो।आशा करते हैं कि जिस तरह महुआ बूंद बूंद टपकता है उसी तरह "महुआ" हरपल खुशहाली टपकाती रहे,मनोरंजन टपकाती रहे। तो,पुरबिया साथियों!हो जायिए तैयार...

आलोक सिंह "साहिल"

2 टिप्‍पणियां:

रंजू भाटिया ने कहा…

वाह महुआ सी ख़बर दी है आपने यह ..बहुत अच्छी बात है यह ...बहुत से लोगों की भाषा है यह .अच्छा लगा सुन कर

Unknown ने कहा…

बहुत ही अच्छी ख़बर