गुरुवार, 1 अप्रैल 2010
रामदेव बौरा गया है...
‘रामदेव बौरा गए हैं, वे अपनी राजनीतिक दवाई बेचने के चक्कर में जाने क्या-क्या बक रहे हैं...सिर्फ रामदेव ही नहीं...और भी तमाम बाबा सब बौरा गए हैं...’
बाबा रामदेव आजकल राजनीति में प्रवेश करने की अपनी योजनाओं को लेकर खासे चर्चे में हैं....वैसे रामदेव जी की चर्चा तो हमेशा ही छाई रही है...जिस दिन से उन्होंने योग को प्रोफेशन का रूप दिया...तब से वे न सिर्फ योगगुरू रह गए बल्कि...राखी सावंत, अमर सिंह के बाद (या शायद पहले, सटीक नहीं पता) मीडिया के सबसे चहेते और बिकने वाले चेहरे बन गए...कभी रजत शर्मा की अदालत में तो प्रभु चावला की सीधी बात में...हर जगह रामदेव ही रामदेव...
कभी सीमा पर जाकर उपदेश देते रामदेव, तो कभी होमोसेक्सुअल के बारे में अपनी राय जाहिर करते रामदेव...कभी लड़कों को कंट्रोल करने की हिदायत देते, तो कभी, तो कभी कुछ...और इन सब टंटों ने उन्हें सिर्फ योग गुरू नहीं रहने दिया...
आज की तारीख में, भारत के सबसे चर्चित चंद लोगों की फेहरिश्त में उनका नाम शुमार हो गया है...अच्छी बात यह है कि...एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है, जो उनकी बातों को सुनता और उन्हें गुनता है...रामदेव जी को लगा कि सही है...हम तो कुछ भी कर सकते हैं...(शायद कर भी जाएं, इंडिया के लोगों का कोई भरोसा नहीं...यहां देवगौड़ा और गुजराल जैसे महान लोग प्रधानमंत्री हुए हैं)
अभी तक राजनीति में व्याप्त गंदगी को दूर करने की बात करने वाले रामदेव अब खुद अपने छवि की आजमाइश करने के लिए मैदान में उतर पड़े हैं...अब उन्हें लगने लगा है कि देश का भला करने के लिए जरूरी है कि सत्ता में रहा जाए...राजनीति का मूल ककहरा उनकी समझ में आ गया है...(थैंक्स टू राम विलास पासवान एंड देवगौड़ा)
रामदेव राजनीति में कितने सफल होंगे, कितने असफल...इसका गणित तो बाद में लगेगा...लेकिन इतना जरूर है कि कुछ लोगों की जमी-जमाई राजनीतिक सत्ता पर आंच जरूर आ जाएगी...और यह ऐसा विषय है जिससे सभी स्थापित राजनीति दल चिंतित हैं...ऊपर से...रामदेव का रो-ब-रोज किसी नेता को खरी-खोटी सुनाने का सिलसिला, ये तो हद ही पार कर गया है...
तभी तो, पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव को एक सभा में मजबूरन कहना पड़ गया कि...
‘रामदेव बौरा गए हैं, वे अपनी राजनीतिक दवाई बेचने के चक्कर में जाने क्या-क्या बक रहे हैं.’
लालू यहीं नहीं रुके...उन्होंने रामदेव के साथ ही लगे हाथ अन्य सभी बाबाओं को भी जमकर खरी-खोटी सुना दी...हालांकि, लालू ऐसे नेता हैं...जो नींद में भी कूटनीतिक भाषा ही बोलते हैं...यानी बगैर तोले एक भई शब्द नहीं बोलते...लेकिन उनका यह बोलना थोड़ा कन्फ्यूज़ कर गया...और छोड़ गया
लाख टके का सवाल कि बौराया (दिमाग फिर जाना) कौन है,
बाबा रामदेव या लालू यादव ?
आलोक साहिल
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4 टिप्पणियां:
अजीब सवाल है, समझ नहीं आता कि इसका क्या जवाब दिया जाए...एक तरफ हैं लालू यादव, जो हमेशा ही उसी मनोदशा में रहते हैं...और दूसरी तरफ रामदेव, जिनके बारे में समझ ही आता कि कब वह इस मनोदशा से उबरे हैं...सवाल थोड़ा असमंजश वाला है...
nice
सबसे बड़ी बात यह कि मैं हमेशा मानता था कि रामदे की एक अलग कैटेगरी है...यह भी जानकता था कि बाकी बाबाओं से बिल्कुल जुदा और प्रभावशाली...पर राखी सावंत और अमरसिंह वाली कैटेगरी में देखकर अच्छा भी लगा, थोड़ा बुरा भी बुरा इसलिए कि बाबा रामदेव की योग का बाजारीकरण कर रहे हैं, जो आज किसी भी बिजनेस या यहां तक कि वस्तु को जिंदा रखने के लिए बेहद जरूरी है...पर राखी सावंत के कैरेक्टर में एक तरह की घिन और छिछोरापन है वह रामदेव में नहीं है, हां वह अपनी बेबाकी के लिए जरूर जाने जाते हैं बस इतना ही साम्य है...
आलोक जी आप नाहक राम देव जी को कह रहे हैं ..
बौराए राम देव नहीं बल्कि हम हैं ...
आज भी वही आस्था ...वही अन्धविश्वाश ...आज हम वैज्ञानिक दौर में हैं ..
अगर हम अपनी धार्मिक पुस्तकों का अनुसरण नहीं कर पा रहे तो ..हम भला कहाँ विज्ञानं कि कसौटी पे परख रहे हैं ...अतः मैं इस से सहमत नहीं कि रामदेव जी बौरा गए हैं ....बौराएँ तो हम हैं जो अभी भी भेडचाल से बहार नहीं निकलना चाहते ...
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